सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

शास्त्रीय नृत्य

भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्य

भारत में सबसे महत्वपूर्ण मुख्य: 7 भागों में बांटा गया है:-
*भरतनाट्यम:-यह तमिलनाडु का प्रमुख शास्त्रीय नृत्य है,जिसे कर्नाटक संगीत के माध्यम से एक व्यक्ति प्रस्तुत करता है,

यहां भ का अर्थ भाव से,र का अर्थ राग से, त का अर्थ ताल से, और नाट्यम का अर्थ थिएटर से है। यह नृत्य पहले मंदिरों मैं प्रदर्शित होता था।
*कथकली:- यह केरल का प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य है, इसमें कलाकार स्वयं गाता नहीं है, बल्कि एक विशेष लय एवं राग के संगीत पर नृत्य करता है,

नाटक की कथावस्तु अधिकांश: महाकाव्य एवं पौराणिक कथाओं पर आधारित है। कथकली का शाब्दिक अर्थ है, किसी कहानी पर आधारित नाटक।
*कुचिपुड़ी:-यह आंध्र प्रदेश का नाट्य नृत्य है। कुचिपुड़ी नामक गांव के नाम पर ही इसका नाम पड़ा, इसमें अनेक कथनको (धार्मिक या पौराणिक) पर नृत्य होता है।
*ओडिसी:-यह उड़ीसा का प्राचीन नृत्य है, यह पूर्णता आराधना का नृत्य है, इसमें नृत्य के माध्यम से संपन्न का भाव लिए, नृत्य की ईश्वरीय स्तुति करती हैं।

*कथक:-यह मूल्यत: उत्तर भारत का शास्त्रीय नृत्य है। 13वीं शताब्दी के संगीत रत्नाकर ग्रंथों में कत्थक शब्द मिलता है।
*मणिपुरी:-यह मणिपुर का प्राचीन रहते हैं, जो वैष्णव धर्म की विषय वस्तु का अवलंबन लेकर शास्त्री नृत्य में रंग गया। इस नाते में अंग संचालन के 2 रूप में तांडव और लास्य, जैसे अभिनय द्वारा रामलीला और कृष्ण लीला की जीवन प्रस्तुति।
*मोहिनीअट्टम:-यह नृत्य केरल से संबंधित है, यह वैष्णव परंपरा से अनुप्राणित नृत्य है, जिसकी चर्चा'व्यवहार माला'नामक ग्रंथ में मिलती है । मोहिनी का अर्थ'मोहित करने से'है। इसमें एकल नृत्य होता है, नर्तकी सादी वेशभूषा में रहती है, मोहिनीअट्टम तथा भरतनाट्यम का उद्गम स्त्रोत एक ही है, किंतु कई भेद है। मोहिनीअट्टम श्रंगार प्रधान नृत्य है। जबकि भरतनाट्यम भक्ति प्रधान। मोहिनीअट्टम में लास्य की प्रधानता है, जबकि भरतनाट्यम में तांडव अंग का प्रयोग किया जाता है।

भारत के प्रमुख लोक नृत्य

असम :- खेल गोपाल, बिहू, कलीगोपाल महारास, नटपुजा, बोई साजू, खल चांगबी, नागा नृत्य राखल, झकुरा, बिछुआ।
नागालैंड:- केदोहोह, खेवा, लिम, नुरलिम, कुमीनागा, रेगमा, चोंग
मणिपुर:- बसंत रास, संकीर्तन, व्यंगटा,की तलम, थावल चोंग्रबी , महारास, राखल।
पश्चिम बंगाल:- जात्रा, कीर्तन, बाउल, जया, गंभीरा, रामवेश, काठी।
बिहार:- बखो - बखाइन , विदेशिया, मांघा, सरहुल, सोहराई, कर्मा, जातरा। 
झारखंड:-झाऊ, घूमकुड़िया, जदूर, सरहुल, सोहराई, करमा, बैमा, मुका सैंड्रा ,माघी, जट- जटनी, जाया, विदायत।
उड़ीसा:- संचार, डंडानटा, चाऊ, पैका अया, सवारी, गरुड़ वाहन, जदुर मुदारी
उत्तर प्रदेश:- रासलीला, नौटंकी, झूला, छपेली, दिवाली
उत्तरांचल:- कजरी और करन
पंजाब:- भांगड़ा, गिद्दा, कीकली, घमान
हरियाणा:- घोडीनाच , सांग
हिमाचल:- दशहरा, छारबा, महाथू थाली,जिद्दा, छपेली, डांगी
राजस्थान:- घूमर, कठपुतली,झूलन लीला ढोला, गोपीका लीला, मारू, कृष्ण
जम्मू कश्मीर:- राउफ, हिकत, चाकरी,भरवागीता
गुजरात:-गरबा, रासलीला, गणपति भजन, डांडिया रास,भवई,झकोलिया,
महाराष्ट्र:- लेजम,दहिकाला, लावनी,तमाशा,मोनी,
केरल:- ओणम,थुलाल, सारी
कर्नाटक:- यक्षगान, कुजीता,कर्गा
आंध्र प्रदेश:- घंटा मरदाला
तमिल नाडु:- कुंभी, आत्म,बसंत
मध्य प्रदेश:- चैत,रीना, पाली , नवरानी, तपाडी, हुलकी।
छत्तीसगढ़:- सैला,करमा, भगोरिया

मेघालय:- बांग्ला
मिजोरम:- पखुपिला, चेरोकान
लक्ष्यदीप:-परीचा, काली

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Lithosphere (स्थलमण्डल)

  स्थलमण्डल यह पृथ्वी की कठोर भूपर्पटी की सबसे ऊपरी सतह है। इसकी मोटाई महाद्वीप और महासागरों में भिन्न-भिन्न होती है। (35-50 किलोमीटर महाद्वीपों में 6-12 किलोमीटर समुद्र तल में)। चट्टाने पृथ्वी की सतह का निर्माण करने वाले पदार्थ चट्टान या श शैल कहलाते हैं। बनावट की प्रक्रिया के आधार पर चट्टानों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है। 1. आग्नेय चट्टान यह चट्टाने सभी चट्टानों में सबसे ज्यादा (95%) मिलती है । इनका निर्माण ज्वालामुखी उद्गार के समय निकलने वाला लावा के पृथ्वी के अंदर या बाहर ठंडा होकर जम जाने से होता है। यह प्राथमिक चट्टाने कहलाती है क्योंकि बाकी सभी चट्टानों का निर्माण, इन्हीं से होता है। उत्पत्ति के आधार पर यह तीन प्रकार की होती है:- 1. ग्रेनाइट (Granite) इन चट्टानों के निर्माण में मैग्मा धरातल के पन्ना पहुंचकर अंदर ही जमकर ठोस रूप धारण कर लेता है।मेघा के ठंडा होने की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है क्योंकि अंदर का तापमान अधिक होता है और बनने वाले क्रिस्टल काफी बड़े होते हैं। 2. बेसाल्ट (basalt) यह समुद्री सदैव पर पाई जाती है 3. ज्वालामुखिय(volcanic) ज्वालामुखी विस्फोट के क...

Periodic table

  आवर्त सारिणी (periodic table) तत्वों का वर्गीकरण:-(classification of element) *सन् 1869 में एशियन वैज्ञानिक मेंडलीफ ने तत्वों का प्रथम आवर्त वर्गीकरण दीया । *तत्वों के गुण, उनके परमाणु भार ओके आवर्ती फलन है। *मेंडलीफ के समय में 63 ज्ञात तत्व थे जिन्हे उन्हें सात आवर्तो (क्षतिज कॉलमो) तथा 8 वर्गो (खड़े कॉलमो) मैं बाटा। *आधुनिक आवर्त नियम के अनुसार तत्वों के गुण उनके परमाणु क्रमांक आवर्ती फलन है। *मेंडलीफ की संशोधित आवर्त सारणी को 18 खड़े कॉलम (जिन्हें समूह कहते हैं) तथा सात क्षतिज कोलंमो(जिन्हें आवर्ट हैं) मैं बांटा गया। आवर्त के समय लक्षण:- प्रत्येक आवर्त में बाएं से दाएं जाने पर तत्वों में संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या 1 से 8 तक बढ़ती है। आवर्ता में तत्वों को बढ़ते हुए परमाणु क्रमांक के अनुसार रखा गया है। आवर्त में बाएं से दाएं जाने पर तत्वों की संयोजकता पहले एक से चार बढ़ती है, फिर 4 से 1 तक घटती हैं। आवर्त में बाएं से दाएं जाने पर परमाणु का आकार घटता है। प्रत्येक आवर्त में बाएं से दाएं चलने पर तत्व का धनात्मक गुण घटता है। प्रत्येक आवर्त में बाएं से दाएं चलने पर परमाणु का आकार ...