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environmental pollution (पर्यावरण प्रदूषण)

पर्यावरण प्रदूषण:-

मानव के जिस क्रिया से वायु, जल, मिट्टी तथा वहां के संसाधनों के भौतिक, रसायनिक या जैविक गुणों में कोई ऐसा अवांछनीय परिवर्तन आ जाए जिससे जैव जगत और संपूर्ण वातावरण पर हानिप्रद प्रभाव पड़े, उसे"पर्यावरण प्रदूषण"कहते हैं।
वर्तमान में विश्व के विकसित एवं क्रियाशील देश मानव समाज की सुख सुविधाओं में वृद्धि के लिए भौतिक संसाधन तथा अपने परिवेश का आविवेकपूर्ण दोहन करने में लगे हैं।
 विकासशील देश औद्योगिक एवं तकनीकी विकास द्वारा विकसित होने का प्रयास कर रहे हैं जबकि विकसित देश अपने संसाधनों के साथ साथ आ जाती है संसाधनों का उपयोग कर और अधिक विकास करने के प्रयास में लगे हैं। अतः मानव अपने स्वार्थों की आपूर्तिहेतु प्राकृतिक परिवेश के साथ निर्दयता का आचरण कर रहा है और आवंटित परिवर्तन कर रहा है जिस कारण उसका परिवेश प्रदूषित होता जा रहा है। विकसित देश के औद्योगिक क्षेत्र में सांस लेना की भी दुर्बल है, जल के प्रदूषित हो जाने के कारण उसे पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। मिट्टी के प्रदूषित हो जाने से बंजर एवं बिहड क्षेत्रों का विस्तार होता जा रहा है।
वाहनों की तेज गति एवं ध्वनि के कारण सुनना भी दुर्लभ हो गया है इससे सभी कारणों में पर्यावरण प्रदूषित में वृद्धि होती जा रही है।
प्रदूषण के मुख्यत: पांच भागों में विभाजित क्या गया है।
प्रदुषण के प्रकार :-
1. वायु प्रदूषण (air pollution)
2. जल प्रदूषण (water pollution)
3. प्रदूषण प्रदूषण (noise pollution)
4. भूमि एवं मृदा प्रदूषण (Land and soil pollution)
5. जैव प्रदूषण ( bio pollution)
1. वायु प्रदूषण (Air pollution)
वायुमंडल में ऑक्सीजन को छोड़ अन्य किसी भी गैस की मात्रा संतुलित अनुपात से अधिक होने पर वायु सेशन के योग्य नहीं रहती। अतः वायु में किसी भी गैस की वृद्धि या अन्य पदार्थों का समावेश वायु प्रदूषण कहलाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार'वायु प्रदूषण को ऐसी परिस्थिति के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें बाहरी वायुमंडल मैं ऐसे पदार्थ का संकेद्रण हो जाता है जो मानव और उसके चारों और विद्वान पर्यावरण के लिए हानिकारक होते है।
वायु प्रदूषण के कारण:-
वायु प्रदूषण के कारणों को दो भागों में बांट सकते हैं:-
1. प्राकृतिक कारण:-वायु में प्रदूषण का प्रमुख कारण प्राकृतिक भी है। ज्वालामुखी से निकली राख,जंगलों की आग,आंधी तूफान के समय उड़ने वाली धूल कण आदि अधिक मात्रा में बायो मिलकर उसके गैस के अनुपात को बिगाड़ कर इसे प्रदूषित कर देते हैं।
2. मानवीय कारण:-
सामान्यत: वायु प्रदूषण में मानव की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। मानव निर्मित औद्योगिक कारखाने, ताप बिजली घर, घरेलू ईंधन, यातायात के साधन आदी बातें बैंकों को दूषित करते हैं। इनसे निकलने वाली गैस, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, क्लोरीन, नाइट्रोजन आदि वायु में मिलकर पर्यावरण को प्रदूषित करते हैं।
जल प्रदूषण:-
व्हेजल जिसमें अनेक प्रकार के खनिज,कार्बनिक तथा कार्बनिक पदार्थ एवं गैस एवं निश्चित अनुपात से अधिक मात्रा में घुल जाते हैं। प्रदूषित जल कहलाता है।
ग्रोवका:-के अनुसार जल प्रदूषण का अर्थ है'मनुष्य द्वारा बहती नदी में ऊर्जा या ऐसे पदार्थ का निस्तारण जिससे जल के गुण में हास्य हो जाए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO):-ने जल प्रदूषण की परिभाषा निम्नलिखित प्रकार से दी है:-
"प्रकृति या अन्य सतों से उत्पन्न अवांछित बहिर पदार्थों के कारण जल दूषित हो जाता है तथा वह विषकत्ताएवं सामान्य स्तर से कम ऑक्सीजन के कारण जीवो के लिए घातक हो जाता है तथा संक्रमक रोगों को फैलाने में सहायक होते हैं।
जल प्रदूषण के प्रभाव:-
जीवो पर प्रभाव:-जल प्रदूषण का जनजीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे हैजा, टाइफाइड,पेचिस वे पोलियो जैसे रोग फैलते हुए बीमारी का रूप धारण कर लेते हैं। प्रदूषित जल के जीवाणु मानव शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।
जल भंडारों में जलीय जीवो के नष्ट होने से खाद्य पदार्थ की हानि होती है। बड़ी संख्या में मछलियां नष्ट हो जाती है तथा आर्थिक समस्या उत्पन्न हो जाती है।जलीय पौधों के नष्ट होने से पर्यावरण में नितांत आवश्यक पदार्थ जैसे ऑक्सीजन आदि की कमी होने लगती है। इस प्रकार पर्यावरण के विनष्ट होने से संपूर्ण परिस्थितिक तंत्र ही असंतुलित हो जाता है। निसंदेह जल प्रदूषण मानव जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित करता है।
वनस्पतियों पर प्रभाव:-
प्रदूषित जल में पौधे के पोषक तत्व उपस्थित होने के कारण सहवाग आधी अधिक विकसित होते हैं जिसे सोच में जीवाणुओं की तीव्र वृद्धि होती है जो जली ऑक्सीजन को कम कर देते हैं। ऐसी परिस्थिति में अधिकांश पौधे नष्ट हो जाते हैं। प्रदूषित जल में मल कवक का आवरण उपस्थित होने के कारण सूर्य प्रकाश जल के अंदर तक प्रवेश नहीं कर पाता। अत: जलीय पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में अवरोध उत्पन्न होता है। इससे जल के तापमान में वृद्धि हो जाती है, पौधे सूख जाते। अपशिष्ट द्वारा जल के प्रदूषित होने से प्रदूषण जल स्त्रोत की पेंदी मैं बैठ जाते हैं। ऐसे जल में जलकुंभी,फर्न एवं नेट लेट्यूसतीव्र गति से बैठते हैं जो जलीय वनस्पति की वृद्धि को रोक देते हैं। और कभी-कभी जरिए पौधे नष्ट हो जाते हैं।
भूमि एवं मृदा प्रदूषण:-
पौधों की जड़ें मिट्टी से पोषक तत्व का अवशोषण करती है। जो की सक्रियता बनाए रखने के लिए उन्हें आवश्यकता अनुसार जल तथा ऑक्सीजनयुक्त वायु प्राप्त होती रहनी चाहिए । प्रदूषित वायु और जल के कारण बता भी प्रदूषित हो जाती है। वर्षा इत्यादि के जल के साथ यह प्रदूषक पदार्थ मिट्टी में भी आ जाते हैं। जैसे वायु में सल्फर डाइऑक्साइड So2वर्षा के जल के साथ मिलकर सल्फ्यूरिक अम्ल में परिवर्तित हो जाते। इसी प्रकाश जनसंख्या की वृद्धि के साथ-साथ अधिक कृषि उत्पादन प्राप्त करने के लिए भूमि की उर्वरता बढ़ाने या बनाए रखने के लिए और ब्रक को एवं कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। यह सभी पदार्थ मृदा में हानिकारक प्रभाव डालते हैं, इस प्रकार का प्रदूषण पौधों की वृद्धि को रोकने, कम करने या मानव मौत का कारण बन सकता है।
मिट्टी एक सवनिर्मित तंत्र है मिट्टी के ऊपर इतनी अधिक बोझ बढ़ गया है कि वह कभी खाली नहीं छोड़ी जाती। यदि मिट्टी को थोड़े समय के लिए परती (fallow) या खाली छोड़ दिया जाए तो उनमें पोषक तत्व स्वयं उत्पन्न हो जाते हैं।
ध्वनि प्रदूषण:-
विकास के इस युग में अन्य प्रदूषण ओं की भांति ध्वनि प्रदूषण ने भी एक गंभीर समस्या का रूप धारण कर लिया है। ग्रामों की अपेक्षा कस्बा, नगरों एवं महानगरों में धोनी की समस्या ने विकराल रूप ले लिया है।विकसित एवं विकासशील देशों के नगरों तथा महानगरों में शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत करना कठिन होता जा रहा है। सड़कों पर परिवहन के विभिन्न साधनों जैसे:-रेल, ट्रक, बस, मोटर कार, स्कूटर, बाइक इत्यादि के इंजन एवं टायरों की गड़गड़ाहट तथा इनके हॉर्न की आवाज इतनी अधिक शोर उत्पन्न करती है कि सामान्यत: सुनने में अधिक कठिनाई होती है । तेज गति के विमानों, सुपर फास्ट रेल गाड़ियों तथा कारवां की भांति चलने वाली सड़क वाहनों एवं उनके शोर करते तीखे हॉर्न, कल-कारखानों में लगी विभिन्न प्रकार की मशीनों, टेलीफोन की घंटियों, बैंड बाजा, लाउडस्पीकरो, नगरों की तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या ने शोर (ध्वनि) का विलक्षण माहौल उत्पन्न कर दिया है।हमारे चारों ओर के पर्यावरण में गूंजने वाली विभिन्न प्रकार की दुनिया हमारे आधुनिक सभ्यता की देन है। ऐसा लगता है कि शांतिपूर्ण वातावरण मिलना आज के लिए नगरों में बड़ा ही कठिन है।
वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास से जहां भौतिक सुख सुविधाओं में वृद्धि हुई है वहीं दूसरी और कल-कारखाना, परिवहन एवं मनोरंजन के विभिन्न साधनों ने ध्वनी या शोर प्रदूषण की समस्या को जन्म दीया है। यह तकनीकी विज्ञान में प्रगति का परिमाण है। वास्तव में निरंतर शोध एवं उत्पीड़न है जिसका मनुष्य की भावुक भौतिक अवस्था पर कुप्रभाव पड़ता है। इससे शक्ति कम हो जाती है, ध्वनि एक विशेष प्रकार की गांव तरंग है जिस का संचरण, प्राय: वायु द्वारा होता है।किसी वस्तु से उत्पन्न आवाज जब कानों की सहनशीलता से अधिक हो जाती है तो वह अप्रिय लगने लगती है। इसे शोर या अधिक ऊंची आवाज़ कहते हैं। अवांछित आवाज़ जिससे मानव के कानों में दर्द का कष्ट का अनुभव होता हो। ध्वनि प्रदूषण कहलाता है। धोनी का मापन डेसीबल में किया जाता है। उच्च तीव्रता भाई ध्वनि को अवांछित आवाज कहते हैं।
जैव प्रदूषण:-
वर्तमान वैज्ञानिक युग में जिस गति से औषधि विज्ञान में प्रगति हो रही है उसी गति से मानव जीवन के लिए नए नए खतरे विकसित होते जा रहे हैं। माधव में जहां एक और सृजनात्मक प्रवृत्ति पाई जाती है वहीं दूसरी और उसमें विनाश आत्मक प्रवृत्ति भी बढ़ती जा रही है। आज मानव इतना सक्षम हो गया है कि, बिना गोला बारूद या तीर तलवार चलाएं मात्र'जैव प्रदूषण'के माध्यम से ही लाखों व्यक्ति को काल का ग्रास बना सकते हैं।
जीवाणु, विषाणु तथा अन्य सूक्ष्मजीवों जैसे प्लेग के पिस्सू आदि के द्वारा भाइयों, खाद्य पदार्थ, जल या अन्य वस्तुओं को प्रदूषित कर मानव को मृत्युकारित करना जैव प्रदूषण कहलाता है।

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