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भारत की रियासतें व उनका इतिहास

परिचय तथा इतिहास:-

मुग़ल तथा मराठा साम्राज्य के पतन के परिणाम स्वरूप भारतवर्ष बहुत से छोटे बड़े राज्यों में विभक्त हो गया, इनमें से सिंध,भावलपुर, दिल्ली, अवध, रुहेलखंड, बंगाल, कर्नाटक मैसूर, हैदराबाद, भोपाल, जूनागढ़ और सूरत में मुस्लिम शासक थे। पंजाब तथा सरहिंद में अधिकांश सिखों के राज्य थे। आसाम, मणिपुर, कंधार, त्रिपुरा, जयंतीया, तनजोर, कुर्ग, ट्रावंकोर, सतारा, कोल्हापुर, नागपुर, ग्वालियर, इंदौर, बड़ौदा तथा राजपूताना, बुंदेलखंड, बघेलखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, कठियावाड़, मध्य भारत और हिमाचल प्रदेश के राज्यों में हिंदू शासक थे। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी सर्वप्रथम व्यापार के उद्देश्य से सूरत, कर्नाटक, हैदराबाद ,बंगाल आदि। समुद्र तट पर स्थित राज्यो से हुआ। ट्रांसलेट योर के साथ संघर्ष के समय राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को प्रेरणा मिली इसके फलस्वरूप साम्राज्य निर्माण का कार्य 1757 ईस्वी से प्रारंभ होकर 1856 तक चलता रहा।

इस एक शताब्दी में देस राज्यों के आपसी झगड़ों से लाभ उठाकर कंपनी ने अपनी कूटनीतिक सैनिक शक्ति द्वारा सारे भारत पर सार्वभौम सत्ता स्थापित कर ली।
अनेक राज्य उसके साम्राज्य में विलीन हो गए।अन्य सभी उसका संरक्षण प्राप्त करके कंपनी के अधीन बन गए, अधीन राज्य "रियासत"कहे जाने लगे। इनकी स्थिति आसंतोषजनक तथा डामाडोल होती गई। रियासतों की शक्ति शिव होती गई। उनकी सीमाएं और स्वतंत्रता कम होती चली गई।
1757 से 1856 तक की स्थिति:-
सन 1756 तक कर्नाटक और तंजावुर क्षेत्र ब्रिटिश कंपनी के अधीन हो गया। 1757 में बंगला उसके प्रभाव क्षेत्र में आ गया। 1761 तक हैदराबाद के निजाम उसका मित्र बन गया 1765 में बंगाल की स्वतंत्रता समाप्त हो गई।
इसी वर्ष इलाहाबाद की संधि दिल्ली के सम्राट शाह आलम और अवध के नवाब  शुजाउदोला के साथ कंपनियों की मेत्री हो गई तथा भारतम् रियासतों के साथ उसके संबंधों का वास्तविक सूत्रपात हुआ। 1765से 1798 तक मराठा,अफ़गानों तथा मैसूर के सुलेमान ओके भय के कारण आत्मरक्षा की भावना से प्रेरित होकर कंपनी ने आरक्षण नीति द्वारा पड़ोसी राज्य से घिरकर सुरक्षित बन गया।
इस अवसरवादी नीति को अवैध और हैदराबाद रियासत के साथ कर्येनावित कीया गया। उसके साथ समानता का व्यवहार किया गया।  परंतु वास्तविकता यह थी कि इसमें उन्हें अधीन बनाने, उनकी सैनिक शक्ति क्षिण करने तथा   उसके संपन्न भागों पर अधिकार करने तथा किसी अवसर को कंपनी ने   अपने हाथ से न जाने दिया । रियासतों के प्रति जितनी नीतियां कंपनियों ने भविष्य में अपनाएं उसमे से अधिकांश अवध में पोषित हुई। इस काल में कंपनियों ने मैसूर तथा मराठा राज्य में  फूट डालकर   हैदराबाद के रूहेलखंड मैं कब्जा करने में सहायता देकर रामपुर का छोटा  राज्य बना दिया । ट्रावनकोर और कुर्ग  कंपनी के संरक्षण में आ गया।
लॉर्ड वेलेजली की आगामी नीति:-
1799से 1805 तक रोड विलेज जी की आगामी नीति के फल स्वरुप सूरत, कर्नाटक तथा तंजौर के राज्यों का अंत हो गया। अवध, हैदराबाद, बड़ौदा, पुणे,और मैसूर सहायक संधियों द्वारा कंपनियों के शिकंजे में बुरी तरह जकड़ लिया गए। अब वे केवल अर्थ स्वतंत्र राज्य भर रहे गए। इसके अतिरिक्त उनकी और कुछ भी हैसियत ना थी उनकी ब्राह  नीति पर भी  ब्रिटिश शासन नियंत्रण हो गया। सैनिक शक्ति घटा दी गई। राज्यों में उन्हीं के खर्च पर सहायक सेना रखी गई जिसके बल पर आंतरिक आक्रमण तथा विद्रोहियों से उनकी रक्षा की गई।
  राजाओं की गतिविधियों पर दृष्टि रखने तथा ब्रिटिश हितों की सुरक्षा एवं वृद्धि के लिए उनकी राजधानियों में ब्रिटिश प्रतिनिधि रहने लगे। सभी विद्रोही हटा दिए गए। अंतरराष्ट्रीय झगड़ों का फैसला ब्रिटिश कंपनी करने लगी।यह अपमानजनक संधि आदेश राज्यों के लिए आठ विनाश तथा ब्रिटिश साम्राज्य के लिए विकास शुक्ला की महत्वपूर्ण कड़ियां के बराबर थी।
युद्ध में परास्त होकर नागपुर और ग्वालियर भी उसी जाल में फस गए। भरतपुर में ब्रिटिश आक्रमण को विफल बना के पश्चात संधि कर ली।इसी समय से रियासतों के शासन ऑन उत्तरदाई होने लगे तथा उनके आंतरिक शासन में अनेक वाहनों से ब्रिटिश रेसिडेंट हस्तक्षेप करने लगे।

हस्तक्षेप ना करने की नीति:-

1805 से 1813 तक ब्रिटिश कंपनियों ने देशी राज्यों के प्रति हस्तक्षेप न करने की नीति अपनाई। इस कारण  ट्रावनकोर तथा सरहिंद के राज्य उसके अधीन हो गए। सतलाज पंजाब की सीमा बना दी गई। 1817 से 1818 में कई राज्य लॉर्ड हेस्टिंग्स की आक्रमक नीति के शिकार बने। मराठा संघ को नष्ट करके सतारा का छोटा सा राज्य बना दिया गया। राजपुताना, मध्य भारत तथा बुंदेलखंड के सभी राज्य सतत विश्व का तथा सुरक्षा की संधियों द्वारा कंपनी के करदाता राज्य बन गए ग्वालियर, नागपुर तथा इंदौर पर पहले से अधिक अपमानजनक संधि और ला दी गई । भोपाल नेता की रक्षात्मक संधि द्वारा अंग्रेजों की अधीनता मान ली। आमिर खान, गुफर खा, तथा करीम खां को क्रमशः टोंक , जावरा तथा गणेशपुर की रियासतें दी गई।नतीजा यह हुआ कि ब्रिटिश सार्वभौमिकता सारे हिंदुस्तान में फैल गई।

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