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constitutional amendment

संशोधन की प्रक्रिया:-

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में संविधान में संशोधन के लिए तीन प्रणालियों को अपनाया गया है।
1*संविधान के कुछ प्रावधानों को संसद साधारण बहुमत द्वारा संशोधित कर सकती है। इस प्रकार के प्रावधानों में नए राज्यों की स्थापना, वर्तमान राज्यों का पुनर्गठन, राज्य की विधान परिषदों की स्थापना अथवा उन्हें समाप्त करने संबंधी विषय सम्मिलित है।
2*संविधान के कुछ प्रावधानों को संसद दो तिहाई बहुमत से संशोधित कर सकता है तथा उनका अनुमोदन अधिकतर राज्यों की विधानसभाओं की स्वीकृति से किया जा सकता है। इस प्रकार जिन प्रावधानों में संशोधन किया जा सकता है उनमें राष्ट्रपति का चुनाव, संज्ञा वे राज्य कार्यकारिणी की शक्तियां, संघीय न्यायपालिका, उच्च न्यायालय ,संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व संशोधन प्रक्रिया इत्यादि सम्मिलित हैं।
3*संविधान के अधिकतर भागों में संशोधन संसद द्वारा दो तिहाई बहुमत से किया जा सकता है। यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि यह दो-तिहाई बहुमत, प्रत्येक संसद की कुल सदस्य संख्या का स्पष्ट बहुमत होना चाहिए।

संविधान के प्रमुख संशोधन:-

  • पहला संशोधन (1951)
इस द्वारा नौवीं अनुसूची को शामिल किया गया।
  • दूसरा संशोधन (1952)
संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व को निर्धारित किया गया।
  • सातवा संशोधन (1956)
इस संशोधन द्वारा जो का अ,ब,स और द वर्गों में विभाजन समाप्त कर उन्हें 14 राज्यों और 6 केंद्र शासित क्षेत्रों में विभक्त कर दिया गया।
  • आठवां संशोधन (1960)
अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों और एंगलो इंडियन समुदाय के लिए विशेष आरक्षण की अवधि 10 वर्ष बड़ा कर सन 1970 तक की गई।
  • 12वा संशोधन (1962)
गोवा, दमन और दीव का भारतीय संघ में एकीकरण किया गया।
  • 13वा संशोधन (1962)
संविधान में एक नया अनुच्छेद 371 (अ) जोड़ा गया, जिसमें नागालैंड के प्रशासन के लिए कुछ विशेष प्रावधान किए गए। 1 दिसंबर, 1963 को नागालैंड को एक राज्य की स्थिति प्रदान कर दी गई।
  • 14वा संशोधन (1963) 
पांडुचेरी को संघ राज्य क्षेत्र के रूप में प्रथम अनुसूची में जोड़ा गया तथा इन संघ राज्य क्षेत्रों (हिमाचल प्रदेश, गोवा, दमन और दीव, पांडुचेरी और मणिपुर) मैं विधानसभाओं की स्थापना की व्यवस्था की गई।
  • 15वा संशोधन (1963)
उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष की गई।
  • 21वा संशोधन (1967)
आठवीं अनुसूची में"सिंधी"भाषा को जोड़ा गया।
  • 22वा संशोधन (1968)
संसद को मेघालय को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित करने तथा उसके लिए विधानमंडल और मंत्रिपरिषद का उपबंध करने की शक्ति प्रदान की गई।
  • 23वा संशोधन (1970)
अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि को और 10 वर्ष तक बढ़ाया गया।
  • 24वा संशोधन (1971)
संसद को मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन का अधिकार दिया गया।
  • 26वा संशोधन ( 1971)
भूतपूर्व देसी रियासतों के शासन का  प्रिवीपर्स समाप्त कर दिया गया।
  • 27वा संशोधन ( 1971)
उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र के पांच राज्यो : असम, नागालैंड, मेघालय,मणिपुर और त्रिपुरा तथा दो संघीय क्षेत्र मिजोरम और अरुणाचल प्रदेश का गठन किया गया तथा इनमें समन्वय और सहयोग के लिए एक'पूर्वोत्तर सीमांत परिषद'की स्थापना की गई ।
  • 31वा संशोधन (1974)
लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या 547 निश्चित की गई। इनमें से 545 निर्वाचित ब्रदर राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होंगे।
  • 36वा संशोधन ( 1975)
सिक्किम को भारतीय संघ में संघ के 22वें राज्य के रूप में प्रवेश प्रदान किया गया।
  • 37वा संशोधन (1975)
अरुणाचल प्रदेश में व्यवस्थापिका तथा मंत्रीपरिषद की स्थापना की गई।
  • 42वा संशोधन ( 1976)
कुछ विद्वानों द्वारा इसकी व्यापक प्रकृति को दृष्टिगत रखते हुए इसे "लघु संविधान" ( mini constitution) की संज्ञा प्रदान की गई है । की प्रमुख बातें इस प्रकार हैं:-
1. इसके द्वारा संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष, समाजवादी और अखंडता शब्द जोड़े गए।
2. इसके द्वारा अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्य की व्यवस्था करते हुए नागरिकों को 10 मूल कर्तव्य निश्चित किए गए।
3. इसके अनुसार नीति निर्देशक तत्व को प्रभावी करने के लिए मूलाधिकारों में संशोधन किया जा सकता है।
4. लोकसभा तथा विधानसभाओं के कार्यकाल में 1 वर्ष की वृद्धि की गई।
5. निर्देशक तत्वों में कुछ नवीन तत्व जोड़े गए।
6. इसके द्वारा शिक्षा, नाप-तोल, वन और जंगली जानवर तथा पक्षियों की रक्षा, यह विषय राज्य सूची से निकलकर समवर्ती सूची में रख दिए गए।
7. यह व्यवस्था की गई थी अनुच्छेद 352 के अंतर्गत आपातकाल संपूर्ण देश में लागू किया जा सकता है या देश के किसी एक या कुछ भाग के लिए।
8. संसद द्वारा किए गए संविधान संशोधन को न्यायालय में चुनौती देने से वर्जित कर दिया गया।
  • 43वा संशोधन (1977)
42वे  संवैधानिक संशोधन की कुछ आपत्तिजनक व्यवस्थाओं, विशेषतया न्यायपालिका से संबंधित व्यवस्थाओं, को रद्द कर दिया गया।
  • 44वा संशोधन ( 1978)
इसकी प्रमुख बातें इस प्रकार हैं।
1.संपत्ति के मूल अधिकारों को समाप्त करके इसे विधिक अधिकार बना दिया गया।
2. लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं की अवधि पुनः 5 वर्ष कर दी गई।
3. राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति,प्रधान मंत्री और लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव विवादों की सुनवाई का अधिकार पुनः सर्वोच्च तथा उच्च न्यायालय को ही दे दिया गया।
4. मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रपति को जो भी परामर्श दिया जाएगा, राष्ट्रपति मंत्री मंडल को उस पर दोबारा विचार करने के लिए कह सकेंगे लेकिन पुनर्विचार के बाद मंत्रिमंडल राष्ट्रपति को जो भी परामर्श देंगे,राष्ट्रपति बुश परामर्श को अनिवार्य: स्वीकार करेंगे।
5. राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा तभी की जा सकेगी जबकि मंत्रिमंडल लिखित रूप से राष्ट्रपति को ऐसा परामर्श दें। आपातकाल युद्ध, बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में ही घोषित किया जा सकेगा'आंतरिक अशांति' के आधार पर नहीं। घोषणा के 1 माह के भीतर संसद के विशेष बहुमत से इसकी स्वीकृति आवश्यक होगी।
6. व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार को शासन के द्वारा आपातकाल में भी स्थगित या सीमित नहीं किया जा सकता, आदि।
  • 45वा संशोधन (1980)
अनुसचित जातियों तथा जनजातियों वर्ग के लिए आरक्षण की अवधि 25 जनवरी, 1990 तक के लिए कर दी गई।
  • 49वा संशोधन ( 1984)
इसके आधार पर संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत त्रिपुरा में  स्वयतशासी  जिला परिषद' की स्थापना की गई ।
  • 51वा संशोधन (1984)
मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम के अनुसूचित जनजातियों को लोकसभा में आरक्षण प्रदान किया गया तथा नागालैंड और मेघालय की विधानसभाओं में जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई।
  • 52वा संशोधन (1985)
इस संशोधन द्वारा संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई इसके द्वारा राजनीतिक दल बदल पर कानूनी रोक लगाने की चेष्टा की गई है।
  • 55वा संशोधन (1986)
अरुणाचल प्रदेश को भारतीय संघ के अंतर्गत राज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
  • 56वा संशोधन (1987)
इसमें गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा देने तथा समन्वय दीप को नया संघीय क्षेत्र बनाने की व्यवस्था है।
  • 57वा संशोधन (1987)
मेघालय ,मिजोरम, नागालैंड तथा अरुणाचल प्रदेश की विधानसभाओं में जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई।

  • 58वा संशोधन (1987)
संविधान के हिंदी में प्राधिकृत पाठ को मान्यता प्रदान की गई है।
  • 61वा संशोधन (1989)
मताधिकार के लिए न्यूनतम आवश्यक आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
  • 62वा संशोधन ( 1990)
लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के आरक्षण में 10 वर्ष की और वृद्धि की गई।
  • 65वा संशोधन (1990)
अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग के गठन की व्यवस्था की गई।
  • 69वा संशोधन (1991)
दिल्ली का नाम'राष्ट्रीय राजधानी राज्य क्षेत्र दिल्ली'किया गया तथा इसके लिए 70 सदस्य विधान सभा तथा सात सदस्यीय मंत्रिमंडल के गठन का प्रावधान किया गया ।
  • 70वा संशोधन ( 1992)
दिल्ली तथा पांडुचेरी संघ राज्य क्षेत्र की विधानसभाओं के सदस्यों की राष्ट्रपति के निर्वाचन मंडल में शामिल करने का प्रावधान किया गया।
  • 71वा संशोधन ( 1992)
तीन और भाषाओं: कोंकणी,मणिपुरी और नेपाली को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया।
  • 73वा संशोधन (1993)
संविधान में एक नया भाग 9 तथा एक नई अनुसूची 11वीं अनुसूची जोड़ी गई और पंचायती राज्य व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।
  • 74वा संशोधन (1993)
संविधान में एक नया भाग: भाग 9 क और एक नई अनुसूची बारहवीं अनुसूची जोड़कर शहरी क्षेत्र की स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया।
  • 79वा संशोधन (2000)
अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि 25 जनवरी, 2010 ई तक के लिए बढ़ा दी गई।
  • 81वा संवैधानिक संशोधन (2000)
इस संविधान संशोधन के माध्यम से व्यवस्था की गई है कि अब राज्यों के प्रत्यक्ष केंद्रीय करो से प्राप्त कुल धनराशि का 29% हिस्सा मिलेगा।
  • 84वा संविधान संशोधन (2001)
लोकसभा एवं विधानसभा की सीटों की संख्या में सन 2026 तक कोई छेड़छाड़ नहीं करने संबंधी 14 वा संविधान संशोधन अधिनियम 2002 पारित किया गया। निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन सन 1991 की जनगणना पर आधारित किया गया।
  • 85वा संवैधानिक संशोधन (2001)
इस संशोधन से सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजातियों के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण का मार्ग प्रशस्त किया गया।
  • 87 वा संविधान संशोधन विधेयक (2003)
इसमें यह प्रावधान किया गया है कि निर्वाचन क्षेत्र का परिसीमन सन 2001 की जनगणना के आधार पर होगा।
  • 88वा संवैधानिक संशोधन विधेयक (2003)
इस संशोधन के द्वारा संविधान की सातवीं अनुसूची में संशोधन कर केंद्र सरकार को सेवा कर लगाने का अधिकार प्रदान किया गया है।
  • 91वा संविधानिक संशोधन विधेयक (2003)
इसमें दल बदल विरोधी कानून में संशोधन किया गया है इसके अतिरिक्त यह प्रावधान भी किया गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या लोकसभा और विधानसभा की सीटों के 15% से ज्यादा नहीं कर सकती।
  • 92वा संविधानिक संशोधन विधेयक (2003)
इसमें आठवीं अनुसूची में चार और भाषाओं- मैथिली, डोंगरी, बावड़ा और संथाली को जोड़ा गया है।
  • 93वा संविधानिक संशोधन विधेयक ( 2005)
इनके तहत गैर सहायता प्राप्त निजी शिक्षण संस्थाओं मैं आरक्षण की सुविधा प्रदान की गई है, इसे संविधान के अनुच्छेद 15 में जोड़ा गया है।
*यह सभी संवैधानिक संशोधन अति महत्वपूर्ण है।

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