कार्बन एवं उसके यौगिक(Carbon and its compound)
कार्बन एक ऐसा तत्व है जो एक और पेंसिल में लगे ग्रेफाइट के रूप में कोमल तथा हीरे के रूप में अत्यंत कठोर और अभूतपूर्व चमक वाला है, तो वही लकड़ी के कोयले के रूप में काला, यही नहीं कार्बन सभी सजीवों (जंतु एवं वनस्पतियों) तथा दैनिक जीवन में एक िदन मे योगिक के रूप में उपस्थित होता है ।
निर्जीव वस्तुओं में भी कार्बन मुक्त रूप एवं योगिक दोनों ही रूप में उपस्थित हो सकता है। मुक्त रूप में कार्बन अपने विभिन्न रूपों में पाया जाता है। संयोग अवस्था में कार्बन बहुत से योगिक में पाया जाता है।
कार्बन की उपस्थिति योग के रूप में
कार्बन, कोयला, कालिख, ग्रेफाइट, हीरा आदि विभिन्न रूपों में भी मुक्त अवस्था में प्राप्त होता है यह सभी पदार्थ कार्बन तत्व के भिन्न रूप में जिनमें हमें कार्बन के अपरूप कहते हैं। पदार्थ के इस रूप को अपरूपता कहते हैं। कार्बन के विभिन्न रूपों के भौतिक गुणों में विभिन्नता दिखाई देती है। हीरा चमकदार व कठोर होता है, जबकि कोयला, काजल, काले ग्रेफाइट, काले रंग के होते हैं। इनके गुणों में विभिन्नता कार्बन परमाणुओं की व्यवस्था में विभिन्नता के कारण होती है।कार्बन परमाणु की व्यवस्था के आधार पर कार्बन के विभिन्न रूपों को दो भागों में बांटा जाता है।
1. क्रिस्टलिय
2. अक्रिस्टलिय
1. क्रिस्टलिय
क्रिस्टलीय रूप में कार्बन परमाणु निश्चित क्रम में व्यवस्थित रहते हैं जबकि आक्रिस्टलिय रूप में कार्बन परमाणु निश्चित क्रम में व्यवस्थित नहीं रहते हैं
कार्बन के अक्रिस्टलीय अपररूपो मैं कार्बन परमाणुओं की कोई निश्चित व्यवस्था नहीं होती, अर्थात इनकी क्रिस्तलीय संरचना नहीं होता है। कोयला, काजल, लकड़ी का कोयला आदि आक्रिस्टलीय अपरूप है, कोयले तथा लकड़ी के कोयले, जंतु तथा सुगर चारकोल में प्राय कुछ अशुद्धियां उपस्थित रहती हैं।
लकड़ी का कोयला ( काष्ठ चारकोल)
काष्ठ चारकोल लकड़ी को ऑक्सीजन की कम उपस्थिति में दहन कर प्राप्त किया जाता हैं। इस प्रक्रम को भंजक आसवन कहते हैं। यह काले रंग का पदार्थ है, यह जल्द से हल्का है जिसके कारण जल में तैरता है, इसका प्रयोग ईंधन के रूप में तथा जल के शोधन ने किया जाता है।
जंतु चारकोल
यह जंतुओं की हड्डियों के भंजक आसवन से बनाया जाता हैं, जंतु चारकोल में कैल्शियम फास्फेट के साथ कार्बन लगभग 12%होता है। इसका प्रयोग चीनी उद्योग में गन्ने के रस को रंगहीन करने में तथा फास्फोरस के योगिक बनाने में किया जाता है।
शुगर चारकोल (केरामेल)
इसे चीनी (C12H22O11) पर सांद्र गंधक के अम्ल की क्रिया द्वारा बनाया जाता है, गंधक का अम्ल चीनी से जल को अवशोषित कर लेता है, तथा कार्बन शेष रह जाता है।
C12H22O11 H2So4 12C +11H2O
शुगर चारकोल मुख्य रूप से अपचायक रूप में प्रयुक्त होता है। यह धातु ऑक्साइड को धातु के रूप में अपचयित करता है।
लैंप ब्लैक ( कालिख)
सीएमओ मतलब तेल को वायु की सीमित मात्रा में जलाने पर प्राप्त होती है, ग्रामीण क्षेत्रों में लैंप/दीपक से प्रकाश उत्पन्न करने के लिए मिट्टी का तेल प्रयोग किया जाता है, इससे प्राप्त कालिख में कार्बन 98 - 99 % तक होता है।
कालिक का प्रयोग प्रिंटर की स्याही, जूते की पॉलिश तथा डबल टायर आदि बनाने में किया जाता है।
कार्बन का क्रिस्टलीय अपरूप
ग्रेफाइट शब्द ग्रीक भाषा के ग्रेफो बना है जिसका अर्थ है लिखना, तहसील के अंदर पतली छड़ (लीड) जिस से लिखा जाता है ग्रेफाइट की बनी होती है।प्ले फाइट में कार्बन के परमाणु इस प्रकार व्यवस्थित रहते हैं कि उनकी अनेक समतलीय प्रत्यय होती हैं प्रत्येक प्रहर 6 कार्बन परमाणु षटकोणीय छल्ले के रूप में व्यवस्थित रहते हैं।छल्ले का प्रत्येक कार्बन परमाणु तीन अन्य कार्बन परमाणुओं से जुड़ा होता है, ग्रेफाइट क्रिस्टल में कार्बन परमाणुओं की षटकोणीय रिंगो से बनी उनकी परते होती हैं।
औरतों के मध्य क्षीण बलो के कारण ग्रेफाइट नरम होता है। ग्रेफाइट स्लेटी रंग का मुलायम एवं चिकना पदार्थ है, इसका गलनांक 3700० सेल्सियस होता है। यह विद्युत का सुचालक है। इसका प्रयोग विद्युत इलेक्ट्रोड बनाने में किया जाता है।कार्बन के अपरूप होगी करें यह भी ऑक्सीजन के साथ अभिक्रिया कर कार्बन डाइऑक्साइड गैस बनाता है, ग्रेफाइट अधिक मात्रा में चीन, भारत, श्रीलंका, उत्तरी कोरिया, और मेक्सिको में पाया जाता है। भारत में यह बिहार, जम्मू कश्मीर, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक में पाया जाता है।
2*हीरा
हीरा कार्बन का एक क्रिस्टलीय अपरूप है।इसमें कार्बन का एक परमाणु कार्बन के अन्य चार परमाणुओं से जुड़ा होता है, कार्बन परमाणु की चतुषफलकिय व्यवस्था के कारण यह पूर्णत: आबद्ध कठोर तथा त्रिविमीय संरचना का होता है।
*हीरा कठोरतम प्राकृतिक पदार्थ है।
हीरे का उपयोग कांच काटने तथा धातुओं में छेद करने के लिए होता है। इसको विभिन्न कॉल पर काटकर गहने एवं अंगूठी बनाने में भी उपयोग करते हैं। भारत में हीरा बहुत ही कम मात्रा में पन्ना, सतना ( म०प०), बांदा (उत्तर प्रदेश) तथा गोलकुंडा (कर्नाटक) मैं पाया जाता है ।
फुलरीन (Fullerene)
सन 1985 में रसायनिक धोने ग्रेफाइट को अत्यधिक उच्च ताप तक गर्मकर कार्बन का एक नया अपरूप संश्लेषित किया । जिसे फुलरीन कहां गया।
फुलरीन वह क्रिस्टलीय कार्बन है, जिसमें 30से 960 परमाणुओं में एक अणु प्राप्त होता है। फुलरीन कहलाता है। फुलरीन C60 का एक अणु जिसका आकार फुटबॉल की तरह होता है। कार्बन के 60 परमाणु द्वारा बना होता है। यह परमाणु (hexagonal) वे पंचकोणीय (pentagonal) व्यवस्था में जुड़े रहते हैं C60 फुलरीन विद्युत का कुचालक होता है।
19वीं शताब्दी के आरंभ में पदार्थों को उनके प्राकृतिक स्त्रोतों के आधार पर दो वर्गों में विभाजित किया गया।
1*कार्बनिक (organic)
2*अकार्बनिक (inorganic)
जंतु और वनस्पतियों से उपलब्ध पदार्थों को कार्बनिक पदार्थ तथा खनिज पदार्थ, चट्टाने, भूगर्भ आदि जैसे निर्जीव स्त्रोतों से उपलब्ध पदार्थों को अकार्बनिक पदार्थ कहा गया जैसे:-चीनी, यूरिया, अल्कोहल, सिरका, आदि कार्बनिक योगिक के वर्ग में तथा सोडियम क्लोराइड, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल, कैल्शियम कार्बोनेट,कार्बन डाइऑक्साइड आदि योगी का कार्बनिक योगिक के वर्ग में रखे गए।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें