मानवाधिकार(human rights)
मनुष्य को प्रकृति ने जो अधिकार स्वयं प्रदान किए हैं जो स्वत:सिद्ध है तथा जो व्यक्ति की नैतिक एवं आत्म उन्नति में सहायक होतेे हैं, उन्हें मानव अधिकार कहांं जाता है।
मानव अधिकार का उद्भव राज्य द्वारा नहीं होता है वह मात्र उनकी रक्षा करता है। मानव अधिकारों के निर्धारण का अधिकार व्यक्ति के साथ-साथ लोकहित में भी होता है। मानव अधिकारों की संख्या बहुत है जिन मानव अधिकारों को राज्य द्वारा प्रत्याभूत (गारंटी) प्रदान किया जाता है उन्हें मौलिक अधिकार कहते हैं ।
10 दिसंबर,1948 को संयुक्त राष्ट्रीय संघ की महासभा द्वारा मानव अधिकारों की घोषणा की गई।इसके अंतर्गत सभी मनुष्यों के कुछ मौलिक अधिकारों अथवा मानव अधिकारों को मान्यता दी गई:-जैसे जीवन, स्वतंत्रता तथा सुरक्षा के अधिकार, अकारण गिरफ्तारी पर रोक का प्रावधान, सभी व्यक्तियों को आवाज अभिव्यक्ति एकत्र होने धार्मिक स्वतंत्रता तथा संविधान एवं विधि द्वारा स्वीकृत मूल अधिकारों की रक्षा के लिए प्रभावी वेद उपचारों का अधिकार सामाजिक सुरक्षा शिक्षा तथा जीविकोपार्जन के अधिकार ।
हमारे देश में अक्टूबर 1993 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया।इसमें एक अध्यक्ष तथा कुछ अन्य सदस्य होते हैं अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों की नियुक्तियां भारत के राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति को अध्यक्ष व उसके अन्य सदस्यों के नामों की संस्तुति एक समिति करती है। जिसमें प्रधानमंत्री (अध्यक्ष) केंद्रीय गृह मंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा का उपसभापति, लोकसभा तथा राज्यसभा के विपक्ष के नेता ।
मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। इन्हें मात्र भारत के राष्ट्रपति द्वारा इनके पद से हटाया जा सकता है।किंतु उसे राष्ट्रपति तभ हटा सकता है जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने संबंधित सदस्य या अध्यक्षों के विरुद्ध, अक्षमता, या दुर्व्यवहार की पुष्टि कर दी हो।
राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की भारतीय राज्यों में यह अपेक्षा की गई है कि राज्य अपने क्षेत्राधिकार में राज्य मानव अधिकार आयोग का गठन करता है लेकिन भारत के कुछ ही राज्यों ने राज्य मानव अधिकार आयोग का गठन किया है। यदि इस दिशा में राज्यों ने प्रयास प्रारंभ कर दिया है।उत्तर प्रदेश में मानव अधिकार आयोग का गठन 4 अप्रैल, 1996 को किया गया था।
सूचना का अधिकार(right to information)RTI
भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को जाति, धर्म लिंग में बिना भेदभाव करते हुए सूचना का अधिकार प्रदान किया गया है, भारत सरकार ने यह संकल्प लिया कि अधिकार और प्रभावी सूचना की पहुंच सुनिश्चित करने हेतु यह वांछनीय होगा कि सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम, 2002 अधिक प्रभावी, सहभागी और अर्थपूर्ण बनाया जाए। संसद द्वारा सूचना अधिकार विधेयक, 2005 पारित किया गया।
लोकसभा में इस विधेयक को 11 मई, 2005 तक राज्यसभा ने 12 मई, 2005 को पारित किया जबकि, राष्ट्रपति ने इस विधेयक पर 15 जून, 2005 को हस्ताक्षर कर इस पर अपनी अनुमति प्रदान कर दी। 12 अक्टूबर,2005 से सूचना का अधिकार है कानूनी अधिकार के रूप में हमें प्राप्त है।
सूचना के अधिकार का कानून सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाती है। इसका मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार को रोकना तथा जवाबदेही को निश्चित करना है। अब हमेशा अधिकार का प्रयोग कर सरकार तथा उसके तंत्र से कोई भी सूचना प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े विभागों जैसे खुफिया विभाग, वैज्ञानिक शोध विभाग, परमाणु एवं उपग्रह विभाग तथा ऐसे विभागों की सूचनाओं को जिनसे देश को नुकसान हो सकता है। इसे कानून के दायरे में नहीं रखा गया है। असम रायफल्स, सी०सी० एस ० एफ ०और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड जैसे 18 खुफिया या सुरक्षा एजेंसियों को छूट दी गई है जो इस अधिकार के अंतर्गत सूचनाएं प्रदान नहीं करेंगी।
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