शिवाजी:-
शिवाजी का जन्म 10 अप्रैल, 1627ईस्वी को शिवनेर का दुर्ग में हुआ था। इनके पिता का नाम शाहजी भोंसले तथा माता का नाम जीजाबाई था। शाहजी भोंसले पहले अहमदनगर और फिर बीजापुर के सुल्तान की सेवा में आ गए थे। शिवाजी की शिक्षा-दीक्षा माता जीजाबाई के संरक्षण में हुई। व।धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी। उनकी इस प्रवृत्ति का शिवाजी पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसके अतिरिक्त शिवाजी के गुरु दादा और देव ने शिवाजी को युद्ध विधा में पारंगत किया और साथ ही उन्हें राजनीति की शिक्षा भी दी।
शिवाजी एक वीर योद्धा थे। उन्होंने अपने विवेक एवं शक्ति से जावली, कोंकण और बीजापुर पर विजय प्राप्त कर ली। उनका यह कार्य 1657 इसवी तक पूरा हो गया था। उन्होंने 1659 ईस्वी में बीजापुर के सेनापति अफजल खा का वध कर दिया।
शिवाजी को 1665ईस्वी मैं मिर्जा राजा जयसिंह के हस्तक्षेप से मुगलों से पुरंदर की संधि करनी। उस समय औरंगजेब मुगल सम्राट था।सन 1674 ईस्वी में शिवाजी ने अपना राज्यभिषेक कराया। 6 वर्ष तक शासन करने के बाद सन 1680 ईस्वी में शिवाजी का निधन हो गया। शिवाजी के समय मराठा साम्राज्य दक्षिण का सशक्त राज्य था। शिवाजी के बाद उनके पुत्र शमभाजी छत्रपति बने।
शमभाजी को बंदी बनाकर मरवा दिया। शिवाजी का भाई राजाराम मुगलों का सामना करता रहा। राजाराम के बाद उसकी पत्नी ताराबाई अपने अवयस्क पुत्र शिवाजी द्वितीय की संरक्षिका बनकर मराठा राज्य की रक्षा करती रही। शाहूजी के समय पेशावर की शक्ति में वृद्धि हो गई जिससे व ही वास्तविक शासक बन गए। बालाजी विश्वनाथ, बाजीराव प्रथम, बालाजी बाजीराव के समय मराठा राज्य का विस्तार चरम पर था। परंतु 1761 इसी में पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों को अहमद शाह अब्दाली से परास्त होना पड़ा। मराठा शक्ति के अंतिम स्तम्भ नाना साहब ने 1857 ईसवी के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।
शमभाजी को बंदी बनाकर मरवा दिया। शिवाजी का भाई राजाराम मुगलों का सामना करता रहा। राजाराम के बाद उसकी पत्नी ताराबाई अपने अवयस्क पुत्र शिवाजी द्वितीय की संरक्षिका बनकर मराठा राज्य की रक्षा करती रही। शाहूजी के समय पेशावर की शक्ति में वृद्धि हो गई जिससे व ही वास्तविक शासक बन गए। बालाजी विश्वनाथ, बाजीराव प्रथम, बालाजी बाजीराव के समय मराठा राज्य का विस्तार चरम पर था। परंतु 1761 इसी में पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों को अहमद शाह अब्दाली से परास्त होना पड़ा। मराठा शक्ति के अंतिम स्तम्भ नाना साहब ने 1857 ईसवी के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया।
शिवाजी का शासन प्रबंध
शिवाजी केवल एक महान सेना नायक तथा जन्म जाता नेता ही नहीं थे, वह एक कुशल शासक भी थे। शिवाजी ने"हिंदू पद पादशाही 'का आदर्श अपने सम्मुख रखा था । उनका शासन प्रबंधन प्राचीन काल की हिंदू शासक पद्धति के आदर्श पर आधारित था।
शिवाजी ने तेजा हितकारी राजतंत्र आत्मक शासन पद्धति को अपनाया था जिसका प्रमुख स्त्रोत सम्राट होता था।शिवाजी को अपने प्रयास से अपार स्नेह था तथा उसकी सुख सुविधा का वह निरंतर ध्यान रखते थे। राज्य के नियम बनाने, उन को लागू करने तथा दंड विधान, सैनिक व्यवस्था और न्याय करने के सर्वोच्च अधिकार उन्हें ही प्राप्त थे।
अष्टप्रधान:- शिवाजी की शारदा के लिए आठ मंत्रियों की एक परिषद होती थी जो'अष्टप्रधान 'नाम से संबोधित की जाती थी । शिवाजी की मंत्रिपरिषद के निम्नलिखित पद थे।
1. प्रधानमंत्री अथवा पेशवा:- मुगल सम्राटों के वजीर के समान शिवाजी के राज्य में पेशवा का स्थान था।वह अन्य सभी विभागों तथा मंत्रियों पर निगरानी रखता था तथा राजा की अनुपस्थिति में राज्य के कार्य की देखभाल करता था प्रजा की सुख सुविधाओं का ध्यान रखना उसका कर्तव्य था।
2. मजूमदार अथवा अमात्य:- आय तथा व्यय का निरीक्षण करना तथा संपूर्ण राज्य की आय का विवरण रखना अमात्य का कार्य होता था।
3. वाकयानवीस अथव मंत्री:- राज दरबार में घटित होने वाली घटनाओं तथा राजा के कार्यों का विवरण रखना मंत्री का कार्य था। वेयर आजा के विरुद्ध रचित कुचक्रों का पता लगाता था। उसके खाने-पीने की वस्तुओं का निरीक्षण करता था तथा राज महल का प्रबंध करता था।
4. सचिव:- सम्राट के पत्र व्यवहार का निरीक्षण करना सचिव का कार्यभार।
5. सुमंत अथवा दबीर:- बाहरी नीति मे राजा को परामर्श देने वाला मंत्री सुमंत कहलाता था।
6. सेनापति:- सेना का अध्यक्ष सेनापति होता था जिसका कारण सैनिकों की भर्ती करना, सैन्य व्यवस्था करना, सैनिकों को प्रशिक्षण देना तथा सेना में अनुशासन बनाए रखना होता था।
7. पंडितराव:- धार्मिक कार्यों के दान, धार्मिक उत्सवों का प्रबंधन, ब्राह्मणों को दान देना तथा धर्म विरोधियों को दंड देना पंडितराव का कर्तव्य था।
8. न्यायाधीश :-दीवानी, फौजदारी तथा सेना संबंधी झगड़ों का निर्णय करने के लिए न्यायाधीश सबसे बड़ा अधिकारी होता था जो हिंदू रीति-रवाजों एवं प्राचीन धर्म शास्त्रों के आधार पर निर्णय करता था।
अष्टप्रधान की स्थापना का निर्णय शिवाजी ने अपने राज अभिषेक के समय नहीं किया, इसका विकास हुआ था शिवाजी आवश्यकता के अनुसार इन मंत्रीगणों की संख्या में वृद्धि करते रहे, अंत में उनकी अस्त्र विधानसभा का पूर्ण विकसित रूप उनके छत्रपति बनने के पश्चात ही दृष्टिगोचर हुआ।
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