भारत में सामाजिक व धार्मिक सुधार आंदोलन:-
ब्रह्म समाज की स्थापना राजा राममोहन राय द्वारा 20 अगस्त 1828 ई० को कोलकत्ता मैं की गई जिसका उद्देश्य तत्कालीन हिंदू समाज में व्यापक बुराइयों जैसे सती प्रथा ,बहू विवाह, वेशयागमन, जातिवाद, अस्पृश्यता आदि को समाप्त करना था।
राजा राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का मसीहा माना जाता है।
राजा राममोहन राय की कुछ प्रमुख कृतियों में"प्रिसेप्ट्स ऑफ जिस्स"प्रमुख है । इन्होंने संवाद कोमोदी का भी संपादन किया।
राजा राममोहन राय ने 1814 ईसवी में आत्मीय सभा की स्थापना की, 1815 ईसवी में इन्होंने वेदांत कॉलेज की स्थापना की।
इन्होंने सती प्रथा के विरुद्ध आंदोलन चलाया तथा पाश्चात्य शिक्षा के प्रति अपना समर्थन जताया।
कालांतर में देवेंद्रनाथ टैगोर (1818 ई ० -1905 ई ०) नए ब्रह्म समाज को आगे बढ़ाया। इनके द्वारा ही केशवचंद्र सेन को ब्रह्म समाज का आचार्य नियुक्त किया गया।
आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा 1875 ई ० मैं मुंबई में की गई, देश का प्रमुख उद्देश्य वैदिक धर्म को पुन: शुद्ध रूप से स्थापित करने का प्रयास भारत को धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक रूप से एक सूत्र में बांधने का प्रयत्न, पाश्चात्य प्रभाव को समाप्त करना था।
स्वामी दयानंद सरस्वती को बचपन में मूलशंकर के नाम से जाना जाता था। इनके गुरु स्वामी विरजानंद थे।
हीरो ने अपने उपदेशों में मूर्ति पूजन ,बहूदेव वाद , पशु बलि, श्राद्घ, जंत्र, मंत्र, तंत्र, झुठे कर्मकांड आदि की आलोचना की तथा पुन: वेदों की ओर चलो'का नारा दिया।
इनके विचारों का संकलन इनकी कृति"सत्यार्थ प्रकाश'मैं मिलता है।जिसकी रचना इन्होंने हिंदी में की थी।
सामाजिक सुधार के क्षेत्र में उन्होंने छुआछूत एवं जन्म के आधार पर जाति प्रथा की आलोचना की।
स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा चलाए गए'शुद्धि आंदोलन' के अंतर्गत उन लोगों को पुन:हिंदू धर्म में आने का मौका मिला जिन्होंने किसी कारणवश कोई और धर्म स्वीकार कर लिया था ।
सर्वप्रथम इस मिशन की स्थापना 1896-97 ई० मैं स्वामी विवेकानंद द्वारा कोलकत्ता के समीप बराह नगर में की गई, तत्पश्चात बेलूर (कोलकत्ता) मैं मिशन की स्थापना की गई ।
रामकृष्ण आंदोलन के मुख्य प्रेरक स्वामी रामकृष्ण परमहंस थे। रामकिशन की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार का श्रेय उनके योग्य शिष्य स्वामी विवेकानंद को जाता है।
1893 ई ० मैं स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में हुए धर्म संसद में भाग लेकर पाशचात्य जगत को भारतीय संस्कृति में दर्शन से अवगत कराया था।
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