सर्वोच्च न्यायालय:-
न्यायाधीशों की संख्या:-
एक मुख्य न्यायधीश और 25 अन्य न्यायाधीश।
न्यायाधीशों की नियुक्ति:-
राष्ट्रपति द्वारा यह नियुक्तियां सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श के आधार पर की जाती है सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इस प्रसंग में राष्ट्रपति को परामर्श देने के पूर्व अनिवार्य रूप से चार वरिष्ठत्मन्यायाधीशों के समूह से परामर्श प्राप्त करते हैं तथा न्यायालय से प्राप्त परामर्श के आधार पर राष्ट्रपति को परामर्श देते हैं ।
वैवाहिक तौर पर सर्वोच्च न्यायालय का सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बनता है।
न्यायाधीशों की योग्यताएं:-
वह भारत का नागरिक हो।
मैं किसी उच्च न्यायालय दो या दो से अधिक न्यायालय में लगा था कम से कम पांच वर्ष तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो अथवा किसी उच्च न्यायालय या न्यायालयों में लगातार 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो। अथवा राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून का उच्च कोटि का ज्ञाता हो।
साधारणत: सर्वोच्च न्यायालय का प्रत्येक न्यायधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर आसीन रह सकता है। इस अवस्था के पूर्व वह स्वयं त्यागपत्र दे सकता है। इसके अतिरिक्त सिद्ध कदाचार अथवा असमर्थता के आधार पर संसद के द्वारा 2/3सदस्यों के बहुमत से न्यायधीश को उसके पद से हटाया जा सकता है।
वेतन, भत्ते और अन्य सुविधाएं:-
वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य 33,000 रुपए प्रति माह व अन्य न्यायाधीशों को 30,000 रुपए प्रतिमाह वेतन प्राप्त होता है न्यायाधीशों के लिए पेंशन व सेवानिवृत्ति वेतन की व्यवस्था भी है। उन्हें वेतन व भत्ते भारत की संचित निधि (consolidated fund of India) से दिए जाते हैं।
न्यायाधीशों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए संविधान में व्यापक प्रावधान है इनमें से कुछ इस प्रकार हैं:-
न्यायाधीशो के वेतन और भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित है।तथा उन पर संसद द्वारा मतदान की आवश्यकता नहीं।
न्यायाधीशों के वेतन तथा सेवा की शर्तों में उनके कार्यालयों में उनके हित के विपरीत परिवर्तन नहीं किए जा सकते।
न्यायाधीशों को उनके पद से हटाने की प्रक्रिया काफी कठिन बनाई गई है। उन्हें केवल दुर्व्यवहार,तथा असमर्थता के सिद्ध होने पर दोनों सदनों द्वारा दो तिहाई बहुमत से पारित प्रस्ताव के आधार पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है,
न्यायाधीशों द्वारा अवकाश प्राप्त के पश्चात भारत के किसी भी न्यायालय में वकालत करने पर प्रतिबंध लगाया गया है।
न्यायाधीशों द्वारा लिए गए निर्णय अथवा कार्यों की आलोचना नहीं की जा सकती।यदि कोई व्यक्ति ऐसा करता है तो उसे न्यायालय की मानहानि के लिए दंडित किया जा सकता है
न्यायाधीशों के व्यवहार के बारे में संसद अथवा राज्य विधानसभा में चर्चा नहीं की जा सकती है।
राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति स्वेच्छा से नहीं कर सकता।इसके लिए उसे सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों तथा ऐसे अन्य न्यायालय के न्यायाधीशों से परामर्श करना पड़ता है। जिन्हें वे उपयुक्त समझा।
न्यायालय को अपने अधिकारियों तथा कर्मचारियों को नियुक्त करने की पूर्ण स्वतंत्रता है।
प्रारंभिक एक मेव क्षेत्राधिकारी:- इसका आशय उन विवादों से है, जिनकी सुनवाई केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ही की जा सकती है।, इसके अंतर्गत निम्न विषय आते हैं:-
भारत सरकार का एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवाद।
भारत सरकार, संघ का कोई राज्य राज्य तथा एक या अधिक राज्यों के बीच विवाद,
दो या दो से अधिक राज्यों के बीच संवैधानिक विषयों के संबंध में उत्पन्न कोई विवाद।
न्यायिक पुनर्विलोकन (judicial review)
इस अधिकार के तहत सर्वोच्च न्यायालय सुनिश्चित करता है कि विधायिका द्वारा बनाए गए कानून तथा कार्यपलिका द्वारा जारी किए गए आदेश संविधान के प्रावधानों के विपरीत नहीं है।यदि यह संविधान से मेल नहीं खाते तो यह उन्हें असंवैधानिक घोषित कर सकता है।
अपील क्षेत्राधिकार:-
सर्वोच्च न्यायालय भारत का अंतिम अपीलीय न्यायालय है। इसे समस्त राज्यों के उच्च न्यायालयों के निर्माण के विरुद्ध अपीले सुनने का अधिकार है।
परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार:-
भारत का राष्ट्रपति किसी कानून प्रश्न यह तथ्य पर सर्वोच्च न्यायालय से सलाह मांग सकता है।यह सर्वोच्च न्यायालय का कर्तव्य है कि वह राष्ट्रपति द्वारा दिए गए मामले पर सलाह दें परंतु उसकी सलाह राष्ट्रपति पर बाध्य नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए सभी निर्णय को प्रकाशित किया जाता है। तथा अन्य मामले में उन का हवाला दिया जा सकता है। इस प्रकार यह एक अभिलेख न्यायालय के रूप में कार्य करता है।
मौलिक अधिकारों का रक्षक:-
यह नागरिकों के मौलिक अधिकारों का रक्षक और संविधान का संतुलन चक्र है।
जनहित अभियोग ( public interest Litigation):-
इस व्यवस्था के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति किसी ऐसे समूह अथवा वर्ग की ओर से न्यायालय में वाद दायर कर सकता है, जिसे कानूनी अधिकारों से वंचित कर दिया गया हो।इस व्यवस्था की विशेषता है कि न्यायालय अपने सारे तकनीकी और काले विधि संबंधी नियमों की गहराई में जाए बिना एक सामान्य पत्र के आधार पर कार्यवाही कर सकता है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें