सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

नगर प्रशासन

नगर प्रशासन:-

 भारतीय संविधान के 74वे संविधान संशोधन के आधार पर उत्तर प्रदेश के राज्य विधान मंडल ने उत्तर प्रदेश नगर स्वायत्त शासन अधिनियम,1994'पारित किया है । तथा इसी के अनुपालन में प्रदेश में नागरिया स्वायत्त शासन की व्यवस्था की गई है।सन 1994 के इस अधिनियम से पूर्व उत्तर प्रदेश राज्य के नगरीय क्षेत्र के लिए स्थानीय स्वायत्त शासन की 5 संस्थाएं थी, किंतु इस अधिनियम द्वारा केवल निम्नलिखित तीन संस्थाएं शेष रह गई है-
1. नगर निगम

सन 1960 में प्रदेश के 500000 से अधिक जनसंख्या वाले पांच नगरों में नगर निगमों की स्थापना की गई थी। सन 1982 के अधिनियम के अनुसार तीन अन्य महानगरों-मेरठ, बरेली, तथा गोरखपुर-मैं नगर निगम स्थापित कर दिया गया है । बाद में गाजियाबाद, अलीगढ़ और मुरादाबाद में नगर निगम स्थापित हो गए हैं। वर्तमान में कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी, आगरा, मेरठ, बरेली, गोरखपुर, झांसी, गाजियाबाद, अलीगढ़, सहारनपुर, उन्नाव तथा मुरादाबाद में नगर निगम कार्य रत है। पहले नगर निगम को ही नगर महापालिका कहते थे।अब महापालिका शब्द के स्थान पर निगम शब्द का प्रयोग किया जाने लगा है।
नगर निगम का गठन:-प्रत्येक नगर निगम, एक नगर प्रमुख और तीन प्रकार के सदस्यों से मिलकर गठित होता है। इसका वर्णन निम्नानुसार है।
 1.निर्वाचित सदस्य:-निगम के निर्वाचित सदस्यों को सभासद कहा जाता है तथा इसकी संख्या राज्य सरकार द्वारा सरकारी गजट में दी गई विज्ञापित के आधार पर निश्चित की जाती है ।इन निर्वाचित सदस्यों की संख्या कम से कम 60 और अधिक से अधिक 110 होती है।
2. मनोनीत सदस्य:- राज्य सरकार निगम में ऐसे सदस्यों को मनोनीत करता है, जिन्हें नगर प्रशासन का विशेष ज्ञान अथवा अनुभव प्राप्त होता है। इनकी संख्या 5 से कम और 10 से अधिक होती है।
3. पदेन सदस्य:-(१) लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के वे सदस्य जो उन निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनमें नगर पूर्णतः अथवा अशत: समाविष्ट है ।
(२)राज्यसभा और विधान परिषद के सदस्य जो उस नगर में निर्वाचक के रूप में पंजीकृत हैं।
(३) उत्तर प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम,1965 के अधीन स्थापित समितियों के अध्यक्ष जो नगर निगम के सदस्य नहीं है।
नगर निगम सभासदों का निर्वाचन:-नगर निगम के सभासदों का चुनाव नगर के व्यस्क नागरिकों द्वारा किया जाता है।चुनाव के लिए नगर को अनेक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित कर दिया जाता है जिन्हें कक्ष जाता है।प्रत्येक कक्ष में संयुक्त निर्वाचन पद्धति के आधार पर एक सभासद का चुनाव होता है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

शास्त्रीय नृत्य

भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्य भारत में सबसे महत्वपूर्ण मुख्य: 7 भागों में बांटा गया है:- *भरतनाट्यम:- यह तमिलनाडु का प्रमुख शास्त्रीय नृत्य है,जिसे कर्नाटक संगीत के माध्यम से एक व्यक्ति प्रस्तुत करता है, यहां भ का अर्थ भाव से,र का अर्थ राग से, त का अर्थ ताल से, और नाट्यम का अर्थ थिएटर से है। यह नृत्य पहले मंदिरों मैं प्रदर्शित होता था। *कथकली:- यह केरल का प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य है, इसमें कलाकार स्वयं गाता नहीं है, बल्कि एक विशेष लय एवं राग के संगीत पर नृत्य करता है, नाटक की कथावस्तु अधिकांश: महाकाव्य एवं पौराणिक कथाओं पर आधारित है। कथकली का शाब्दिक अर्थ है, किसी कहानी पर आधारित नाटक। *कुचिपुड़ी:- यह आंध्र प्रदेश का नाट्य नृत्य है। कुचिपुड़ी नामक गांव के नाम पर ही इसका नाम पड़ा, इसमें अनेक कथनको (धार्मिक या पौराणिक) पर नृत्य होता है। *ओडिसी:- यह उड़ीसा का प्राचीन नृत्य है, यह पूर्णता आराधना का नृत्य है, इसमें नृत्य के माध्यम से संपन्न का भाव लिए, नृत्य की ईश्वरीय स्तुति करती हैं। *कथक:- यह मूल्यत: उत्तर भारत का शास्त्रीय नृत्य है। 13वीं शताब्दी के संगीत रत्नाकर ग्रंथों में कत्थक शब्...

Lithosphere (स्थलमण्डल)

  स्थलमण्डल यह पृथ्वी की कठोर भूपर्पटी की सबसे ऊपरी सतह है। इसकी मोटाई महाद्वीप और महासागरों में भिन्न-भिन्न होती है। (35-50 किलोमीटर महाद्वीपों में 6-12 किलोमीटर समुद्र तल में)। चट्टाने पृथ्वी की सतह का निर्माण करने वाले पदार्थ चट्टान या श शैल कहलाते हैं। बनावट की प्रक्रिया के आधार पर चट्टानों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है। 1. आग्नेय चट्टान यह चट्टाने सभी चट्टानों में सबसे ज्यादा (95%) मिलती है । इनका निर्माण ज्वालामुखी उद्गार के समय निकलने वाला लावा के पृथ्वी के अंदर या बाहर ठंडा होकर जम जाने से होता है। यह प्राथमिक चट्टाने कहलाती है क्योंकि बाकी सभी चट्टानों का निर्माण, इन्हीं से होता है। उत्पत्ति के आधार पर यह तीन प्रकार की होती है:- 1. ग्रेनाइट (Granite) इन चट्टानों के निर्माण में मैग्मा धरातल के पन्ना पहुंचकर अंदर ही जमकर ठोस रूप धारण कर लेता है।मेघा के ठंडा होने की प्रक्रिया बहुत धीमी होती है क्योंकि अंदर का तापमान अधिक होता है और बनने वाले क्रिस्टल काफी बड़े होते हैं। 2. बेसाल्ट (basalt) यह समुद्री सदैव पर पाई जाती है 3. ज्वालामुखिय(volcanic) ज्वालामुखी विस्फोट के क...

Periodic table

  आवर्त सारिणी (periodic table) तत्वों का वर्गीकरण:-(classification of element) *सन् 1869 में एशियन वैज्ञानिक मेंडलीफ ने तत्वों का प्रथम आवर्त वर्गीकरण दीया । *तत्वों के गुण, उनके परमाणु भार ओके आवर्ती फलन है। *मेंडलीफ के समय में 63 ज्ञात तत्व थे जिन्हे उन्हें सात आवर्तो (क्षतिज कॉलमो) तथा 8 वर्गो (खड़े कॉलमो) मैं बाटा। *आधुनिक आवर्त नियम के अनुसार तत्वों के गुण उनके परमाणु क्रमांक आवर्ती फलन है। *मेंडलीफ की संशोधित आवर्त सारणी को 18 खड़े कॉलम (जिन्हें समूह कहते हैं) तथा सात क्षतिज कोलंमो(जिन्हें आवर्ट हैं) मैं बांटा गया। आवर्त के समय लक्षण:- प्रत्येक आवर्त में बाएं से दाएं जाने पर तत्वों में संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या 1 से 8 तक बढ़ती है। आवर्ता में तत्वों को बढ़ते हुए परमाणु क्रमांक के अनुसार रखा गया है। आवर्त में बाएं से दाएं जाने पर तत्वों की संयोजकता पहले एक से चार बढ़ती है, फिर 4 से 1 तक घटती हैं। आवर्त में बाएं से दाएं जाने पर परमाणु का आकार घटता है। प्रत्येक आवर्त में बाएं से दाएं चलने पर तत्व का धनात्मक गुण घटता है। प्रत्येक आवर्त में बाएं से दाएं चलने पर परमाणु का आकार ...