बादल:-
पृथ्वी के धरातल से विभिन्न ऊंचाइयों पर वायुमंडल में मौजूद जलवाष्प के संघननं से निर्मित जल करो की राशि को बादल (clouds) कहते हैं।
धरातल से जल का वाष्पीकरण लगातार होता रहता है जलवाष्प युक्त वायु ऊपर उठी है तो प्रसारण की प्रक्रिया से वह शीतल होकर संतृप्त हो जाती है जब तापमान ओसांक से नीचे पहुंचता है तो संघनन होकर जलवाष्प अत्यंत सूक्ष्म जल कणों में परिवर्तित हो जाती है। यह जल करो कि संगठित संरचना ही बादल के रूप में नजर आती है।
औसत ऊंचाई 5-13 किलोमीटर
1. पक्षाभ मेघ ( cirrus clouds)
यह बादल सबसे अधिक ऊंचाई पर पाए जाते हैं।
2. पक्षाभ - कपासी मेघ (cirro-Cumulus clouds)
इन्हें मैकेरेल स्काई (mackerel sky) भी कहा जाता है। यह अक्सर समूह में होते हैं।
3. पक्षाभ - स्तरी मेघ (cirro stratus clouds)
यह बादल सूर्य एवं चंद्रमा के आसपास प्रकाशमण्डल (halo) बनाते हैं। इन बादलों से आकाश का रंग दूधिया दिखाई देता है।
मध्य मेघ (middle clouds):-
औसत ऊंचाई 2-7 किलोमीटर
1. कपासी-मध्य मेध (Alto -cumulus clouds)
ये पंक्तिब्द्ध लहरों के रूप में पाए जाते हैं। इन्हें ऊन की तरह संरचना बनाने के कारण ऊ नी मेघ (wood pack clouds) या भेड़ सदृश् मेघ (sheep clouds) भी कहा जाता है।
2. स्तरी- मध्य मेध (Alto stratus clouds)
निम्न मेघ (low clouds)
औसत ऊंचाई 2 किलोमीटर:-
1. स्तरी मेघ (stratus clouds)
यह धरातल में कुछ ऊंचाई पर कोहरे की तरह आकाश को ढक लेते हैं।
2. वर्षा- स्तरी मेघ (nimbo stratus clouds)
इनसे हल्की बारिश होती है।कभी कभी इनसे होने वाली बारिश धरातल पर पहुंचने से पहले ही वास बनकर वायुमंडल में विलीन हो जाती है।
3. स्तरी- कपासी मेघ (strato - cumulus clouds)
ये रंग की परत होती है, जो समूह पंक्तियों के रूप में दिखती है।
*कपासी मेघ (cumulus clouds)
यह दिखने में आकाश में धुनी हुई रुई के ढेर जैसे लगते हैं।
*कपासी-वर्षा मेघ (cumulo- Nimbus clouds):-
इन मेघो से तेज बौछारओं के रूप में बारिश होती है। साथ ही ओले और गणित झंडा भी उत्पन्न होते हैं। भारी वर्षा के कारण इन्हें गरजदार बादल (thunder clouds) कहते हैं।
बादलों से संबद्ध कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:-
बादलों के कई महत्वपूर्ण पक्ष है:-जैसे ऊंचाई, आकार, संघटन, संरचना, रंग और निर्माण प्रक्रिया इत्यादि।
सभी बादलों से वर्षा नहीं होती है।वे बादल जो वर्षा करने से पहले वाष्पीकृत हो जाते हैं। जलवायु की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं।
किसी भी समय पृथ्वी का आधा भाग बादलों में रहता है, लेकिन उसके तीन प्रतिशत भाग पर ही वर्षा होती है।
बादल सौर विकिरण का अवशोषण और परावर्तन दोनों करते हैं।
बादल पार्थिव विकिरण का अवशोषण कर'ग्रीन हाउस'प्रभाव की भूमिका निभाते हैं । साथ ही वे अपने तापमान के अनुसार ऊष्मा का निरंतर उत्सर्जन भी करते हैं।
वर्षा वाले आकाश किसी भी स्थान के दोनों तापांतर को कम करते हैं।
बादलों के निर्माण के लिए वायुमंडल का रुद्रोषम या एंटीबायोटिक तरीके से शीतल होना ज्यादा महत्वपूर्ण है।
जिन बादलों की उत्पत्ति वायु की प्रबल तरंगों से होती है उनका विकास लंबवत ज्यादा होता है। तथा वे धुनी हुई रुई जैसे दिखते हैं इन बादलों का निर्माण भाइयों के धीरे-धीरे ऊपर उठने से होता है, उनका विकास परतो के रूप में होता है ।
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