हर्षकालीन उपलब्धियां :-
गुप्त शासकों के पतन के बाद भारतीय इतिहास छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों के पारस्परिक संघर्ष का इतिहास बन गया। इन सभी राज्यों में थानेश्वर या स्थाण्वीशवर के पुष्यभूति वंश ने संपूर्ण उत्तरी भारत में अपना एक छत्र साम्राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त की।
इसी राजवंश के राजा हर्षवर्धन ने भारतीय इतिहास में अंतिम हिंदू सम्राट होने का गौरव प्राप्त किया। हर्षवर्धन इस वंश का प्रतापी राजा था। उसके पिता का नाम प्रभाकरवर्धन तथा माता का नाम यशोमती था। उस का राज्यारोहण 606 ई० मैं हुआ। हर्ष की मृत्यु 647 ई० मैं हुई । उसने कुल 41 वर्ष तक शासन किया। उसकी राजधानी पहले थानेश्वर थी किंतु बाद में उसने उसे कन्नौज स्थानांतरित कर दिया।
1. राजनीतिक उपलब्धियां:-
हर्ष से पूर्व समस्त भारत की राजनीतिक एकता खंडित हो चुकी थी। तथा छोटे-छोटे राज्यों के पारस्परिक संघर्ष बढ़ गए थे तभी हर्ष की नीतियां एवं प्रयासों ने भारत में पुन: राजनीतिक एकता स्थापित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया । हर्ष का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से दक्षिण में नर्मदा नदी के तट तक तथा पूर्व में काम रूप में पश्चिम में वल्लभी तक फैला था।
हर्ष के शासन काल एक विशिष्ट घटना हेनसांग का भारत आगमन है। वह चीन का एक बौद्ध भिक्षु था जो 630 ई० मैं भारत की कश्मीर सीमा पर पहुंचा । वहां से विभिन्न धार्मिक स्थलों की यात्रा करता हुआ । हेनसांग ने जिन जिन प्रदेशों की यात्रा की वहां की आर्थिक वेभव का उल्लेख करते हुए उसने लिखा है। इस स्थान के सभी लोग समुंदर से अपनी जीविका प्राप्त करते हैं। वल्लभी के विषय में उसने लिखा है। यहां पर 100घर ऐसे हैं। जिनके पास 100 लाख मुद्राएं हैं। सुदूर भागों के दुर्लभ तथा बहुमूल्य पदार प्रचुर मात्रा में यहां जमा किए जाते हैं।हेनसांग के विवरण से पता चलता है कि इस युग में अधिकांश लोगों की जीविका कृषि पर ही निर्भर थी। उद्योग धंधों की उन्नति हो रही थी। हेनसांग ने मिट्टी की बनी प्रतिमाओं आदि का उल्लेख किया है। धातु की बनी हुई अनेक बुद्ध प्रतिमाएं वह अपने साथ ले गया था। भारत के गगनचुंबी भवनों को देखकर हेनसांग को बड़ा अचंभा हुआ था। इन सब से स्पष्ट होता है कि उस युग की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी।
हेनसांग के अनुसार:-तत्कालीन समाज में जाति पाति का बंधन कठोर थे। अंतर्जातीय एवं विधवा विवाह नहीं होते थे। बाल विवाह अवश्य प्रचलित था। परंतु पर्दा प्रथा नहीं थी। निम्न जाति या उच्च जातियों के आवास से दूर रहती थी। लोग लहसुन, प्याज, मास मंदिर एवं मछली का बहुत कम प्रयोग करते थे। ब्राह्मण लोग विद्यार्जन , क्षत्रीय युद्ध और वैश्य व्यापार किया करते थे। शुद वर्ग के लोग बहुत निम्न स्तर का जीवन यापन करते थे। धनी व्यक्ति निर्धनों की सहायता किया करते थे।
धार्मिक दशा:-
धार्मिक दशा के विषय में हेनसांग ने लिखा है कि उस युग में ब्राह्मण धर्म उन्नति पर था और ब्राह्मण साधु बहुत अधिक विद्वान होते थे। ब्राह्मण धर्म की व्यापकता के कारण ही विदेशी इसे ब्राह्मण देश कहते थे। काशी और प्रयाग ब्राह्मण धर्म के केंद्र थे और अधिकांश प्रजा विष्णु की पूजा करती थी। धमर धर्म के साथ ही बौद्ध धर्म भी पनप रहा था। बौद्ध धर्म दो भागों में विभाजित हो चुका था:-हीनयान, और महायान। परंतु इन संप्रदायों में अधिक विभेद नहीं था।और कहीं-कहीं तो दोनों संप्रदाय के लोग एक ही मठ में रहते थे। कन्नौज के 100 विहारों में 1,000 बौद्ध साधु थे जो हीनयान और महायान दोनों संप्रदायों से सहमत थे। जैन धर्म पालन करने वाले कम थे। राजा सभी धर्मों का आदर करते थे और धर्म चारों को धन आदि देते थे।
हेनसांग ने लिखा है कि उस समय शिक्षा का व्यापक प्रसार था। नालंदा विश्वविद्यालय उच्च शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। हर्ष ने उसे राजकीय संरक्षण प्रदान कर रखा था और वह उसे व्याप्त आर्थिक सहायता भी देता था। वहां चीन,मंगोलिया तथा अन्य देशों के अनेक विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करने आते थे।उस समय नालंदा विश्वविद्यालय में 10000 विद्यार्थी अध्ययनरत थे और 1200 शिक्षक अध्यापक कार्य करते थे। विश्वविद्यालय में प्रवेश करना सरल नहीं था। विदेशी विद्यार्थियों को वहां भोजन, दवाई, वस्त्र आदि की विशेष सुविधा प्रदान की जाती थी। हेनसांग ने स्वयं 18 माह तक योग शास्त्र का अध्ययन किया था। काशी एवं वल्लवी के विश्वविद्यालय भी उस समय में बहुत अच्छी अवस्था में थे। हेनसांग ने लिखा है'भारत में इस प्रकार की अन्य सहस्त्रों शिक्षण संस्थाएं हैं। किंतु वैभव में नालंदा की तुलना उसमें से किसी से भी नहीं की जा सकती।
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