रेडियोएक्टिवता (radioactivity)
वह तत्व जो प्रकृति में स्वत: विघटित होते रहते हैं, रेडियोएक्टिव तत्व कहलाते हैं। इनसे निकलने वाली किरणें रेडियोएक्टिव किरणें कहलाती है, तथा इनका यह गुण रेडियोएक्टिवता कहलाता है।
रेडियोएक्टिव ताकि खोज फ्रांस के भौतिक शास्त्री हेनरी बेकिवर ने सन् 1896 मैं की।
रेडियोएक्टिव पदार्थ से निकलने वाली किरणें तीन प्रकार की होती हैं:-
1. एल्फा कण (Alpha particles)
एल्फा कण हीलियम नाभिक या (He 4+) होते हैं तथा प्रत्येक में दो प्रोटोन, दो न्यूट्रॉन तथा दो इकाई धन आवेश होते हैं।
यह प्रबल चुंबकीय विद्युत क्षेत्र में ऋण प्लेट की ओर विक्षेपित एक हो जाते हैं।
यह ऋणात्मक आवेश वाले कण है। अत: यह कण वास्तव में इलेक्ट्रॉन है।
यह विद्युतीय तथा चुंबकीय क्षेत्र में धन प्लेट की और अधिक विक्षेपित होते हैं।
3. गामा किरणें (gama rays)
आवेश शुन्य होता है तथा यह द्रव्यमान रहित होता है।
ये कण विद्युतीय तथा चुंबकीय क्षेत्र में विचलित नहीं होती है। आता है या उदासीन होती है।
गामा किरणों को रेडियो सक्रिय विघटन का द्वितीय प्रभाव मान सकते हैं। ऐसा नाभिक दिन में प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन की संख्या समान होती है, स्थाई नाभिक कहलाती है।
सभी ज्ञात तत्व के समस्थानिक ओं चीन का परमाणु क्रमांक 83 से ज्यादा होता है, रेडियोएक्टिव तत्व कहलाते हैं।
सन 1938 में ऑटो होन तथा स्ट्रास मैन ने ज्ञात किया कि जब U-235 पर मंद गति के न्यूट्रॉन ओं की बौछार की जाति है तो यूरेनियम 235प्रभारी नाभिक मध्य द्रव्यमान के दो खंडों में विभक्त हो जाता है और इसके साथ बहुत अधिक ऊर्जा उत्सर्जित होती है, इस नाभिकीय अभिक्रिया को नाभिकीय विखंडन कहते हैं। अतःवह प्रक्रिया है जिसमें एक भारी नाभिक दो छोटे नाविकों में टूट जाता है तथा अपार ऊर्जा उत्पन्न करता नाभिकीय विखंडन कहलाता है।
परमाणु बम किस सिद्धांत पर आधारित है।
न्यूक्लियर रिएक्टर एक विशेष प्रकार की भक्ति है। जिसमें U -235 का नियंत्रण नाभिकीय विखंडन कराया जाता है। ट्रैक्टर में कैडमियम की छडे, न्यूट्रॉन आवेश का कार्य करती है इन छडो को नियंत्रिके कहते हैं।भाई जल तथा ग्रेफाइट का कार्य न्यूटन की गति को मंद करना है, अर्थात भारी जल तथा ग्रेफाइट मंदक का कार्य करता है। यूरेनियम 235 ईंधन का कार्य करता है।
नाभिकीय संलयन वह प्रक्रिया है जिसमें दो हल्के नाभिक संयोजित होकर एक भारी नाभिक का निर्माण करते हैं। तथा अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। क्योंकि उत्पाद का कुल भार अभिकारक के कुल भार से कम होता है।
हाइड्रोजन बम, नाभि के चलन के सिद्धांत पर आधारित है।
रेडियो कार्बन काल, कार्बनिक मूल कि पुरातत्व मसूड़ों की आयु ज्ञात करने में प्रयोग किया जाता है।
ऊर्जा का स्त्रोत नाभिकीय संलयन है।
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