सुक्ष्मजीवो की उपस्थिति :-
सूक्ष्मजीव सर्वव्यपी होते हैं अर्थात यह हवा, पानी, मिट्टी,पौधे एवं जंतुओं के शरीर के अंदर एवं बाहर सभी जगह पाए जाते हैं। यह अत्यंत विषम पर्यावरण एवं प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे बर्फ,गरम पानी के झरनों, समुद्र की तली, दलदल आदि जगहों पर भी पाए जाते हैं।
अनेक सुक्षम जीव सड़े गले पदार्थों मैं मृतोपजीवी के रूप में रहते हैं। कुछ सूक्ष्मजीवजंतुओं और पौधों के शरीर में परजीवी के रूप में भी पाए जाते हैं। जैसे एंटेमीबा हिस्टॉलिटिका मनुष्य की आंतमैं परजीवी होता है तथा पेचिस नामक रोग उत्पन्न करता है। इसी प्रकार नींबू के पौधे पर जैंथमोनस साइट्रि नामक नामक जीवाणु कैंसर नामक रोग उत्पन्न करता है।
*सूक्ष्मजीवों का वर्गीकरण:-
1. सुषमा जी वह को सामान्यता निम्नलिखित 5 समूह में बांटा जाता है:-
जीवाणु
विषाणु
प्रोटोजोआ
कवक
शेवाल
यह कोशिकीय जीव होते हैं जो हवा, मिट्टी, जल सभी स्थानों पर पाए जाते हैं। परंतु नमी युक्त स्थानों पर इनकी संख्या अधिक होती है। यह गोलाकार, सर्पाकार होते हैं,जीवाणु की कोशिका में केंद्रक नहीं पाए जाते हैं इनकी कोशिकाओं के चारों ओर कोशिका भित्ति होती है। कुछ जीवाणु की कोशिका अपने चारों ओर एक कठोर आवरण बनाती है जैसे कैप्सूल कहते हैं। कुछ दीवारों में एक या अनेक धागे जैसी संरचना पाई जाती हैं। अनुकूल परिस्थितियों में जीवाणु में बहुत तेजी से बदलाव किया जाता है।
सायनोबैक्टीरिया (नील हरित शैवाल)को पहले सवाल के समूह में रखा जाता था परंतु अब इसे जीवाणुओं के साथ मोनेरा समूह में रखा जाता है । इनका रंग नीला हरा होता है तथा यह प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयम बनाते हैं।दूसरे शब्दों में यह स्वपोषी होते हैं इनकी कोशिका के चारों ओर स्लेष्मा का आवरण होता है। सायनोबैक्टीरिया नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं और हमारे लिए बहुत उपयोगी है।
दरअसल सभी सूक्ष्म जीवों में विषाणु सबसे सूक्ष्म होते हैं। यह न्यूक्लिके अम्ल तथा प्रोटीन के बने होते हैं। यह पूर्ण परजीवी होते हैं और स्वतंत्र रूप से अपना विभाजन नहीं कर पाते हैं।प्रजनन के लिए इन्हें सदैव किसी जीवित कोशिका की आवश्यकता होती है विषाणु द्वारा पौधे जंतु एवं मनुष्य में अनेक प्रकार के घातक रोग उत्पन्न होते हैं जैसे मनुष्य में चेचक ,पोलियो , डेंगू ,चिकनगुनिया आदि।
प्रोटोजोआ भी सूक्ष्मजीवों का एक समूह है। इस संघ के जीव एक कोशिकीय होते हैं। यह जल, मिट्टी तथा जीवों के शरीर में पाए जाते हैं। प्रोटोजोआ संघ के जीव स्वतंत्र रूप से या अन्य जीवों के शरीर में परजीवी के रूप में पाए जाते हैं। इनमें प्रचलन के लिए विशेष रचना होती है । जैसे अमीबा में कूट पाद , पैरामीशियम में सिलिया आदि।
कवक को फफूंद भी कहा जाता है इन्हें अक्सर हम अपने घरों में रोटी, ब्रेड अचार चमड़े की वस्तु पर उगते हुए देखते हैं। बरसात के दिनों में कूड़े करकट पर उगने वाले छाते नुमा संरचना कुकुरमुत्ता भी एक प्रकार का कवक है।कब को में अनेक लंबे धागे जैसी संरचना होती है जिन्हें कवक तंतु कहते हैं।कवक तंतु एक कोशिकीय कोशिकीय होते हैं और आपस में मिलकर कवक जाल बनाते हैं कवक की कोशिका में एक या अधिक केंद्के पाए जाते हैं।कवक हमारे लिए लाभदायक है तो हानिकारक दोनों होते हैं उदाहरण के लिए मशरूम भोजन के रूप में तथा पेनिसिलिन नामक कवक से पेनिसिलिन नामक प्रतिजैविक दवा बनाई जाती है। पक्सिनिया नामक कवक गेहूं में रोग उत्पन्न करता है।
मनुष्य में कवक द्वारा उत्पन्न होने वाले रोग मुख्य ते दाद है। कई बार सिर में होने वाला दर्द से व्यक्ति गंजा भी हो जाता है।
शैवाल को सामान्य भाषा में कई भी कहा जाता है यह सामान्य जल में पाई जाती है। कुछ सवाल जैसे क्लोरेला, डाइटर एककौशिकी होते हैं। परंतु अधिकांश , शैवाल बहुकोशिकीय होते हैं। इनका शरीर सुखाय कहलाता है अर्थात इन में जड़, तना, पत्ती का अभाव होता है। जीवाणुओं की तुलना में इन में निश्चित केंद्रक पाए जाते हैं। शेवाल हमारे लिए लाभदायक होते हैं। यह भोजन तथा चारे के रूप में भी उपयोग किए जाते हैं। नदियों तथा समुद्र में पाए जाने वाली डाइटंस का उपयोग टूथपेस्ट, आप रो दिए तथा वार्निश एवं पेंट बनाने में होता है।
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