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Fertilizers (उर्वरक)

उर्वरक (fertilizers) वनस्पतियों अपने भोजन मुख्यत  : भूमि से जल में विलय यौगिकों के रूप में ग्रहण करती है। लगातार फसल उगाने से भूमि की उर्वरता कम होती जाती है। जिनमें प्रमुख नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और कैल्शियम होते हैं। अतः उनकी क्षति की पूर्ति करना अति आवश्यक है। मुंह में क्यों रखता है बनाए रखने के लिए उसमें खाद और उर्वरक डाले जाते हैं। कुछ प्रमुख उर्वरक:- बेसिक कैल्शियम नाइट्रेट (CaO.Ca[NO3]2): यह एक अच्छा नाइट्रोजन उर्वरक है। इसका प्रयोग अमिलिया भूमि में किया जाता है। अमोनियम सल्फेट [(NH4)2SO4]: इसमें 21.2% नाइट्रोजन होती है।इसे भूमि में बार-बार डालने से भूमि अमला हो जाती है जो बीजों के अंकुरण में बाधा उत्पन्न करती है। अतः इसे लाइम के साथ मिलाकर भूमि में डाला जाता है। कैल्शियम सायनोमाइड (Ca CN 2): नाइट्रोलिम : कैल्शियम साइनेमाइड और कार्बन के मिश्रण को नाइट्रोलिम कहते हैं। इसमें 19% नाइट्रोजन होती है। यूरेनियम (कार्बमाइंड)[NH 2CO NH 2]: यह सबसे अच्छा नाइट्रोजन उर्वरक है, इसमें बुरानुसार 46.6% नाइट्रोजन होती है ।इसकी भूमि में पुनरावृति करने पर यह भूमि के पीएच को नहीं बदलता । कैल

Solution (विलयन)

विलयन  (solution) दो या दो से अधिक रासायनिक पदार्थों का समांग मिश्रण, विलयन कहलाता है। इस समांग मिश्रण में जो पदार्थ घोला जाता है वह विलेय कहलाता है। तथा वे द्रव्य जिनम विलेय घोला ज्यादा है। वह विलायक कहलाता है। विलयन  बहुत स्थाई होते हैं तथा वास्तविक विलयन प्रकाश का प्रकरण नहीं करते ऐसे विलयन के करो को सूक्ष्मदर्शी द्वारा नहीं देखा जा सकता , जैसे: लवण विलयन, समुंद्र जल, शक्कर विलयन कॉपर सल्फेट का विलयन, सिरका आदि। कोलाइडी अवस्था(colloidal state) कोलाइडी विलियन में, विलेय के कण वास्तविक विलयनो  के विलय के कणों से बड़े किंतु निलंबन के विलेय के कणों से छोटी होती है। यह बहुत स्थाई होते हैं और यह अति सूक्ष्म दर्शी द्वारा देखे जा सकते हैं। कोलाइडी विलियन प्रकाश किरण के प्रकीर्णन कर देते हैं। कोलाइडी विलियन प्रवृत्ति में मांग होते हैं यह अरुण संख्यक गुण प्रदर्शित करते हैं। जैसे ब्राउनी गति, विद्युत कण संचलन, टिंडल प्रभाव आदि। असल में प्रक्षेपण माध्यम द्रव्य ठोस होते हैं। पायस(Emulsifier) ऐसे कोलाइडी विलयन जिनमें परीक्षा पर मध्यम तथा  व्यवस्था द्रव्य होते हैं:-पायस कहलाते हैं:-दूध, कॉड लिवर त

Water stream (जल धाराएं)

धाराएं:- जल राशि में एक सुनिश्चित दिशा में तीर्थ दूरी तक सामान्य गति महासागरीय धारा (current) कहते हैं। धाराएं दो तरह की है:-गर्म एवं ठंडी। जो धाराएं भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर ( निम्न अक्षांश से उच्च अक्षांशों की ओर) गति करती है वह गर्म होती है। जो धाराएं ग्रुप से भूमध्य रेखा की ओर (उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांशों की ओर) आती है वे ठंडी होती है। धाराओं की उत्पत्ति में निम्न कार्य को को उत्तरदाई माना गया है:- *लवण ता *घनत्व में अंतर *तापमान की भिन्नता *पृथ्वी की घूर्णन गति *समुद्री तट का आकार *वायुमंडल एवं पवन महासागरों की प्रमुख जल धाराएं:- अटलांटिक महासागर की धाराएं *उत्तरी विषुवतरेखिय जलधारा  उष्ण अथवा गर्म *दक्षिणी विषुवत रेखीय जलधारा उष्ण *फ्लोरिडा की धारा उष्ण *गल्फ स्ट्रीम या खाड़ी की धारा उष्ण *नार्वे की जलधारा- उष्ण *पूर्वी ग्रीनलैंड धारा-  ठंडी *कनारी की धारा- ठंडी *ब्राजील की धारा उष्ण प्रशांत महासागर की धाराएं;- *उत्तरी विषुवत रेखीय जलधारा- उष्ण अथवा गर्म *क्योंशिया की जलधारा- गर्म  *उत्तरी प्रशांत प्रवाह-गर्म *अलास्का की धारा-गर्म *विपरीत विषुवत रेखीय जलधारा-गर्म *कैलीफोर

Presence of microbes

सुक्ष्मजीवो की उपस्थिति  :- सूक्ष्मजीव सर्वव्यपी होते हैं अर्थात यह हवा, पानी, मिट्टी,पौधे एवं जंतुओं के शरीर के अंदर एवं बाहर सभी जगह पाए जाते हैं। यह अत्यंत विषम पर्यावरण एवं प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे बर्फ,गरम पानी के झरनों, समुद्र की तली, दलदल आदि जगहों पर भी पाए जाते हैं। अनेक सुक्षम जीव  सड़े गले पदार्थों मैं मृतोपजीवी के रूप में रहते हैं। कुछ सूक्ष्मजीवजंतुओं और पौधों के शरीर में परजीवी के रूप में भी पाए जाते हैं। जैसे एंटेमीबा हिस्टॉलिटिका मनुष्य की आंतमैं परजीवी होता है तथा पेचिस नामक रोग उत्पन्न करता है। इसी प्रकार नींबू के पौधे पर जैंथमोनस साइट्रि नामक नामक जीवाणु कैंसर नामक रोग उत्पन्न करता है। *सूक्ष्मजीवों का वर्गीकरण:- 1. सुषमा जी वह को सामान्यता निम्नलिखित 5 समूह में बांटा जाता है:- जीवाणु विषाणु प्रोटोजोआ कवक शेवाल 1. जीवाणु (बैक्टीरिया) यह कोशिकीय जीव होते हैं जो हवा, मिट्टी, जल सभी स्थानों पर पाए जाते हैं। परंतु नमी युक्त स्थानों पर इनकी संख्या अधिक होती है। यह गोलाकार,  सर्पाकार होते हैं,जीवाणु की कोशिका में केंद्रक नहीं पाए जाते हैं इनकी कोशिकाओं के चारों ओर कोशिका

History of India's planning

भारत में नियोजन का इतिहास (भारत में नियोजन का इतिहास) *   1934-सर एम विश्वेशवर्ये ने अपनी पुस्तक planned economy for Indiaमैं 10 वर्षीय योजना प्रस्तुत की जिस का मूल उद्देश्य 10 वर्ष में राष्ट्रीय आय को दोगुना कर ना होते हुए उत्पादक में वृद्धि करना लघु एवं बड़े उद्योगों का समन्वित विकास करना था। *1938-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने पं० जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय नियोजन समिति का गठन किया जिसनेजिसने देश की आर्थिक समस्याओं को ध्यान में रखकर सरकार के समक्ष एक योजना प्रस्तुत की जिस के प्रमुख बिंदु थे-सहकारी कृषि को प्रोत्साहन, उद्योगों का विकास, मिश्रित अर्थव्यवस्था तथा कृषि ऋणों की प्रोत्साहन, उद्योग का विकास, मिश्रित अर्थव्यवस्था तथा कृषि ऋणों की उपलब्धता, *1944-मुंबई के 8 प्रमुख उद्योगपतियों ने मिलकर एक 15 वर्षीय योजना का प्रारूप प्रस्तुत किया जिसे मुंबई प्लेन के नाम से जाना जाता है । Our plan for economic development of India, नाम की इस योजना के माध्यम से प्रति व्यक्ति आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया। यह योजना मुख्य रूप से पूंजीवादी योजना थी जो जन समर्थन न मिलने के कारण

आर्थिक शब्दावली(Economic terminology)

आर्थिक शब्दावली   अनुदान (subsidy): सरकार द्वारा किसी उद्योग या व्यापार को किया गया भुगतान, ताकि उस से उत्पादित वस्तुओं की कीमत ना बढ़े या वह अपनी गतिविधियां बंद ना करें। अनुदान प्रदान करने का उद्देश्य उद्योगों के साथ-साथ उपभोक्ताओं को भी सहायता पहुंचाना है। अनुषंगी हितलाभ (fringe benefits)निर्धारित मासिक वेतन के अतिरिक्त नियोक्ताओं द्वारा अपने कर्मचारियों को जो अतिरिक्त सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं उन्हें अनुषंगी हितलाभ कहा जाता है । आस्थिर उद्योग (footloose industry) वह उद्योग जो किन्ही विशिष्ट अवस्थित संबंधी आवश्यकताओं के अनुभव के कारण कहीं भी स्थापित किए जा सकते हैं अर्थात किसी भी क्षेत्र में उनकी स्थापना की जा सकती है उन्हें अस्थिर उद्योग कहते हैं। अतिरेक बजट (surplus budget)ऐसा बजट जिसमें सरकार की आय उसके वह से अधिक होती है यह अतिरेक  बजट कहलाता है। अनौपचारिक क्षेत्रक (informal sector): विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों में बड़ी संख्या में लोग छोटे-मोटे एवं संप्रदान स्वरोजगार मैं संलग्न रहते हैं। अर्थव्यवस्था के क्षेत्रक को अनौपचारिक क्षेत्रक कहते हैं। उदाहरण:-दर्जी, धोबी, मोटर म

विभिन्न भाग और महत्वपूर्ण अनुच्छेद

विभिन्न भाग और महत्वपूर्ण अनुच्छेद भाग 1: संघ एवं उसका राज्य क्षेत्र: इसमें अनुच्छेद 1 से 4 सम्मिलित हैं जिनमें संघ का ना औरम और राज्य क्षेत्र , नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना,नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों की सीमा हो या नामों में परिवर्तन के संबंध में प्रावधान किया गया है। भाग 2: नागरिकता: इसमें अनुछेद 5 से 11 सम्मिलित हैं जिनमें भारत की नागरिकता के संबंध में प्रावधान ह। भाग 3: मौलिक अधिकार:  इसमें अनुच्छेद 12 से 35 सम्मिलित है जिनमें मूल अधिकारों के संबंध में प्रावधान किया गया है। इसमें अनुच्छेद 14 से 18 तक में समानता का अधिकार, अनुच्छेद 19 से 22 तक में स्वतंत्रता का अधिकार, अनुच्छेद 23 व 24 में शोषण के विरुद्ध अधिकार, अनुच्छेद 25 27 में धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार, अनुच्छेद 29 एवं 30 में संस्कृति एवं शिक्षा से संबंधित अधिकार तथा अनुच्छेद 32 से 35 में नागरिकों को पदार्थ व संवैधानिक उपचारों के अधिकार है। भाग 4: राज्य के नीति निर्देशक तत्व: इसमें अनुच्छेद 36से 51 सम्मिलित है, जिनमें राज्य की नीति के निर्देशक तत्वों का उल्लेख किया गया है। भाग 4 क: मूल कर्तव्य: