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दिसंबर, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Periodic table

  आवर्त सारिणी (periodic table) तत्वों का वर्गीकरण:-(classification of element) *सन् 1869 में एशियन वैज्ञानिक मेंडलीफ ने तत्वों का प्रथम आवर्त वर्गीकरण दीया । *तत्वों के गुण, उनके परमाणु भार ओके आवर्ती फलन है। *मेंडलीफ के समय में 63 ज्ञात तत्व थे जिन्हे उन्हें सात आवर्तो (क्षतिज कॉलमो) तथा 8 वर्गो (खड़े कॉलमो) मैं बाटा। *आधुनिक आवर्त नियम के अनुसार तत्वों के गुण उनके परमाणु क्रमांक आवर्ती फलन है। *मेंडलीफ की संशोधित आवर्त सारणी को 18 खड़े कॉलम (जिन्हें समूह कहते हैं) तथा सात क्षतिज कोलंमो(जिन्हें आवर्ट हैं) मैं बांटा गया। आवर्त के समय लक्षण:- प्रत्येक आवर्त में बाएं से दाएं जाने पर तत्वों में संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या 1 से 8 तक बढ़ती है। आवर्ता में तत्वों को बढ़ते हुए परमाणु क्रमांक के अनुसार रखा गया है। आवर्त में बाएं से दाएं जाने पर तत्वों की संयोजकता पहले एक से चार बढ़ती है, फिर 4 से 1 तक घटती हैं। आवर्त में बाएं से दाएं जाने पर परमाणु का आकार घटता है। प्रत्येक आवर्त में बाएं से दाएं चलने पर तत्व का धनात्मक गुण घटता है। प्रत्येक आवर्त में बाएं से दाएं चलने पर परमाणु का आकार घटने

सहकारी बैंक (co-operative Bank)

सहकारी बैंक (co-operative banks) भारत में सहकारी बैंक अपने व्यापक शाखा नेटवर्क और स्थानीयकृत परिचालनात्मक आधार के साथ सामान्यत: विकास प्रक्रिया में और विशेषकर ऋण वितरण एवं जमा संग्रहण मैं महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।सहकारी बैंकिंग क्षेत्र के विभिन्न कार्यों से जनता के विविध वर्गो ऋण संबंधी विशिष्ट आवश्यकताएं स्थान एवं अवधि के अनुसार पूरी की जाती है। वर्तमान में ग्रामीण क्षेत्र में कृषि तथा संबद्ध क्रियाओं को जो संस्थागत सांख प्राप्त होती है उसमें सहकारी साख का हिस्सा 43% है और इस प्रकार यह कृषि वित्त का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। वाणिज्य बैंक का हिस्सा 50% तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों का 7% है। भारत में सहकारी साख आंदोलन स्तूपाक़ार है जिसके आधार में ग्राम में स्तर पर प्राथमिक साख समितियां, जिला स्तर पर केंद्रीय सहकारी बैंक तथा राज्य स्तर पर राज्य सहकारी बैंक है। 1प्राथमिक सहकारी समितियां(primary cooperative society) यह ग्रामीण या लोक स्तर पर कृषि क्षेत्र की अल्पकालीन ऋणों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए गठित की जाती है। गांव के कोई भी 10 व्यक्ति मिलकर ऐसी समिति की स्थापना कर सकते हैं।

Fuel

ईंधन:-(fuel) जो पदार्थ जलने पर उष्मा उत्पन्न करते हैं ईंधन कहलाते हैं।ईंधन को जलाकर विभिन्न कार्यों के लिए क्षमा प्राप्त की जाती है। जैसे: कोयला, लकड़ी, मिट्टी का तेल, पेट्रोल, डीजल आदि। ईंधन जैसे लकड़ी, कोयला, केरोसिन तेल, एल ० पी ० जी ०, चारकोल आदि घरेलू ईंधन के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। एल०पी०जी० में गैस रिसाव का पता लगाने के लिए इसमें एक तेज गंध वाली पदार्थ एथिल मरकैप्टन मिला देते हैं जिसकी गंधक H 2Sके समान होती है जिसे आसानी से गैस रिसाव का पता चलाया जा सकता है। पेट्रोल, कार तथा वायुमंडल में ईंधन के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। जबकि डीजल, ट्रक, बस, रेलगाड़ी, तथा जहाज में ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। पेट्रोल या  गैसोलीन की गुणवत्ता ऑक्टेन संख्या के रूप में मापी जाती है। अतः ईंधन जिसकी आफ्टर संख्या जितनी अधिक होगी उतनी ही अधिक उत्तम होगा। कृत्रिम रबड़,द्रवित अमोनियम तथा द्रवित हाइड्रोजन रॉकेट में नोदक की तरह प्रयोग किया जाता है। बायोगैस (Bio gas) जनरल वनस्पति का विशेष बड़ी आसानी से अनोक्सी  सूक्ष्म जीवों द्वारा पानी की उपस्थिति में घटित हो जाते हैं, फलस्वरुप मीथेन , कार्ब

Electricity

विद्युतिकी (electricity) भौतिक विज्ञान की वह शाखा जिसमें आवेशों का अध्ययन किया जाता है, विद्युतिकी कहलाता है। इसकी दो उपशाखाएं होती है:- 1. स्थिर विद्युतिकी (electrostatics) 2. गतिक विद्युतिकी (electrodynamics) विद्युतिकी कि वह शाखा जिसमें स्थिर व्यवस्था में आवेशों का अध्ययन किया जाता है, स्थिर विद्युत की कहलाती है। तथागत इस अवस्था में आवेशों का अध्ययन गतिक विद्युतिकी कहलाती है। आवेश द्रव्य का एक मूल गुण है इसे द्रव्य से अलग करना असंभव है। यह दो प्रकार के होते हैं: 1. धनावेश:- किसी पिंड अथवा कण पर पदार्थ में इलेक्ट्रॉन की कमी को धनावेश कहते हैं। धनावेशन पर इसका द्रव्यमान कुछ घट जाता है। 2. ऋणावेश:- किसी पिंड अथवा कर पर पदार्थ में इलेक्ट्रॉन की अधिकता को ऋणावेश कहते हैं।  ऋणावेशन पर इसका द्रव्यमान कुछ बढ़ जाता है। किसी वस्तु का लक्षण अथवा प्रेरण के द्वारा आदेशित किया जा सकता है।

संविधान की अनुसूची

संविधान के अनुसूचियां:- भारतीय संविधान के मूल पाठ में 8अनुसूचियां थी लेकिन वर्तमान समय में भारतीय संविधान में 12 अनुसूचियां हैं। संविधान की इन अनुसूचियों का विवरण निम्न प्रकार है  :- प्रथम अनुसूची:- इसमें भारतीय संघ के घटक राज्य और संविधान क्षेत्रों का उल्लेख है। द्वितीय अनुसूची:- इसमें भारतीय राज्य व्यवस्था के विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, राज्यपाल, लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति और उपसभापति, विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधान परिषद के सभापति और उपसभापति, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, आदि) को प्राप्त होने वाले वेतन, बच्चे और पेंशन आदि का उल्लेख किया गया है। तीसरी अनुसूची:- इसमें विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मंत्री, संसद सदस्य, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों आदि) द्वारा पद ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ का उल्लेख है । चतुर्थ अनुसूची:- इसमें विभिन्न राज्यों तथा संज्ञा क्षेत्रों का राज्यसभा में प्रतिनिधित्व का विवरण दिया गया है। पांचवीं अनुसूची:- इसमें विभिन्नअनुसूचि

भारत के महान्यायवादी

  भारत के महान्यायवादी यह भारत सरकार का प्रथम विधि अधिकारी होता है। के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होता है तथा राष्ट्रपति के प्रसाद प्रयत्न पद धारण करता है। महान्यायवादी बनने के लिए व्यक्ति को सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की योग्यता रखनी जरूरी है। इसे भारत के सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होता है। इसे संसद के दोनों सदनों में बोलने तथा उसकी कार्यवाही ओं में भाग लेने का अधिकार होता है परंतु वह वोट नहीं दे सकता। इंग्लैंड की तरह भारत में महान्यायवादी मंत्रिमंडल का सदस्य नहीं होता। केंद्र में सरकार बदलने पर वह इस्तीफा दे देता है,फिर अगली सरकार द्वारा नामित व्यक्ति ही पद ग्रहण करते हैं। वह निजी प्रैक्टिस भी कर सकता है परंतु सरकार के विरुद्ध ना तो सलाह दे सकता है और ना ही इसके विरुद्ध वकालत कर सकता है। कार्य:- भारत सरकार को विधि संबंधी ऐसे मामलों पर सलाह देना और कानूनी स्वरूपों के ऐसे अन्य कर्तव्य का पालन करना जो उसे सौंपे जाते हैं। ऐसे मामलों में जिनमें भारत सरकार शामिल हो सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय में सरकार का प्रतिनिधित्व करना।

Fertilizers (उर्वरक)

उर्वरक (fertilizers) वनस्पतियों अपने भोजन मुख्यत  : भूमि से जल में विलय यौगिकों के रूप में ग्रहण करती है। लगातार फसल उगाने से भूमि की उर्वरता कम होती जाती है। जिनमें प्रमुख नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम और कैल्शियम होते हैं। अतः उनकी क्षति की पूर्ति करना अति आवश्यक है। मुंह में क्यों रखता है बनाए रखने के लिए उसमें खाद और उर्वरक डाले जाते हैं। कुछ प्रमुख उर्वरक:- बेसिक कैल्शियम नाइट्रेट (CaO.Ca[NO3]2): यह एक अच्छा नाइट्रोजन उर्वरक है। इसका प्रयोग अमिलिया भूमि में किया जाता है। अमोनियम सल्फेट [(NH4)2SO4]: इसमें 21.2% नाइट्रोजन होती है।इसे भूमि में बार-बार डालने से भूमि अमला हो जाती है जो बीजों के अंकुरण में बाधा उत्पन्न करती है। अतः इसे लाइम के साथ मिलाकर भूमि में डाला जाता है। कैल्शियम सायनोमाइड (Ca CN 2): नाइट्रोलिम : कैल्शियम साइनेमाइड और कार्बन के मिश्रण को नाइट्रोलिम कहते हैं। इसमें 19% नाइट्रोजन होती है। यूरेनियम (कार्बमाइंड)[NH 2CO NH 2]: यह सबसे अच्छा नाइट्रोजन उर्वरक है, इसमें बुरानुसार 46.6% नाइट्रोजन होती है ।इसकी भूमि में पुनरावृति करने पर यह भूमि के पीएच को नहीं बदलता । कैल

Solution (विलयन)

विलयन  (solution) दो या दो से अधिक रासायनिक पदार्थों का समांग मिश्रण, विलयन कहलाता है। इस समांग मिश्रण में जो पदार्थ घोला जाता है वह विलेय कहलाता है। तथा वे द्रव्य जिनम विलेय घोला ज्यादा है। वह विलायक कहलाता है। विलयन  बहुत स्थाई होते हैं तथा वास्तविक विलयन प्रकाश का प्रकरण नहीं करते ऐसे विलयन के करो को सूक्ष्मदर्शी द्वारा नहीं देखा जा सकता , जैसे: लवण विलयन, समुंद्र जल, शक्कर विलयन कॉपर सल्फेट का विलयन, सिरका आदि। कोलाइडी अवस्था(colloidal state) कोलाइडी विलियन में, विलेय के कण वास्तविक विलयनो  के विलय के कणों से बड़े किंतु निलंबन के विलेय के कणों से छोटी होती है। यह बहुत स्थाई होते हैं और यह अति सूक्ष्म दर्शी द्वारा देखे जा सकते हैं। कोलाइडी विलियन प्रकाश किरण के प्रकीर्णन कर देते हैं। कोलाइडी विलियन प्रवृत्ति में मांग होते हैं यह अरुण संख्यक गुण प्रदर्शित करते हैं। जैसे ब्राउनी गति, विद्युत कण संचलन, टिंडल प्रभाव आदि। असल में प्रक्षेपण माध्यम द्रव्य ठोस होते हैं। पायस(Emulsifier) ऐसे कोलाइडी विलयन जिनमें परीक्षा पर मध्यम तथा  व्यवस्था द्रव्य होते हैं:-पायस कहलाते हैं:-दूध, कॉड लिवर त

Water stream (जल धाराएं)

धाराएं:- जल राशि में एक सुनिश्चित दिशा में तीर्थ दूरी तक सामान्य गति महासागरीय धारा (current) कहते हैं। धाराएं दो तरह की है:-गर्म एवं ठंडी। जो धाराएं भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर ( निम्न अक्षांश से उच्च अक्षांशों की ओर) गति करती है वह गर्म होती है। जो धाराएं ग्रुप से भूमध्य रेखा की ओर (उच्च अक्षांश से निम्न अक्षांशों की ओर) आती है वे ठंडी होती है। धाराओं की उत्पत्ति में निम्न कार्य को को उत्तरदाई माना गया है:- *लवण ता *घनत्व में अंतर *तापमान की भिन्नता *पृथ्वी की घूर्णन गति *समुद्री तट का आकार *वायुमंडल एवं पवन महासागरों की प्रमुख जल धाराएं:- अटलांटिक महासागर की धाराएं *उत्तरी विषुवतरेखिय जलधारा  उष्ण अथवा गर्म *दक्षिणी विषुवत रेखीय जलधारा उष्ण *फ्लोरिडा की धारा उष्ण *गल्फ स्ट्रीम या खाड़ी की धारा उष्ण *नार्वे की जलधारा- उष्ण *पूर्वी ग्रीनलैंड धारा-  ठंडी *कनारी की धारा- ठंडी *ब्राजील की धारा उष्ण प्रशांत महासागर की धाराएं;- *उत्तरी विषुवत रेखीय जलधारा- उष्ण अथवा गर्म *क्योंशिया की जलधारा- गर्म  *उत्तरी प्रशांत प्रवाह-गर्म *अलास्का की धारा-गर्म *विपरीत विषुवत रेखीय जलधारा-गर्म *कैलीफोर

Presence of microbes

सुक्ष्मजीवो की उपस्थिति  :- सूक्ष्मजीव सर्वव्यपी होते हैं अर्थात यह हवा, पानी, मिट्टी,पौधे एवं जंतुओं के शरीर के अंदर एवं बाहर सभी जगह पाए जाते हैं। यह अत्यंत विषम पर्यावरण एवं प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे बर्फ,गरम पानी के झरनों, समुद्र की तली, दलदल आदि जगहों पर भी पाए जाते हैं। अनेक सुक्षम जीव  सड़े गले पदार्थों मैं मृतोपजीवी के रूप में रहते हैं। कुछ सूक्ष्मजीवजंतुओं और पौधों के शरीर में परजीवी के रूप में भी पाए जाते हैं। जैसे एंटेमीबा हिस्टॉलिटिका मनुष्य की आंतमैं परजीवी होता है तथा पेचिस नामक रोग उत्पन्न करता है। इसी प्रकार नींबू के पौधे पर जैंथमोनस साइट्रि नामक नामक जीवाणु कैंसर नामक रोग उत्पन्न करता है। *सूक्ष्मजीवों का वर्गीकरण:- 1. सुषमा जी वह को सामान्यता निम्नलिखित 5 समूह में बांटा जाता है:- जीवाणु विषाणु प्रोटोजोआ कवक शेवाल 1. जीवाणु (बैक्टीरिया) यह कोशिकीय जीव होते हैं जो हवा, मिट्टी, जल सभी स्थानों पर पाए जाते हैं। परंतु नमी युक्त स्थानों पर इनकी संख्या अधिक होती है। यह गोलाकार,  सर्पाकार होते हैं,जीवाणु की कोशिका में केंद्रक नहीं पाए जाते हैं इनकी कोशिकाओं के चारों ओर कोशिका