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संदेश

संविधान का निर्माण

संविधान सभा की संरचना संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे जिनमें से 292 प्रांतीय विधानसभाओं से तथा 93 देशी रियासतों से आए थे। इनके अलावा 4 सदस्य चीफ कमिश्नर के 4 प्रांतों:- दिल्ली, अजमेर-मारवाड़, कुर्ग और ब्रिटिश बलूचिस्तान से निर्वाचित किए गए थे। प्रत्येक प्रांतों तथा प्रत्येक भारतीय राज्यों को उनकी जनसंख्या का अनुपात में कुल स्थान आवंटित किया गए। मोटे तौर पर 10 लाख के लिए एक स्थान का अनुपात निर्धारित किया गया। प्रत्येक प्रांतों की सीटों को जनसंख्या के अनुपात के आधार पर तीन प्रमुख समुदायो मुस्लिम, सिख और साधारण में बांटा गया। प्रांतीय विधानसभा में प्रत्येक समुदाय के सदस्यों को एक संक्रमणीय मत से अनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करना था। देसी रियासतों के प्रतिनिधियों के चयन की पद्धति परामर्श से तय की जानी थी। 3 जून 1947 की योजना के तहत जब पाकिस्तान के लिए अलग संविधान सभा की स्थापना (16 जुलाई1947) की गई तो भारतीय संविधान सभा की सदस्य संख्या घटकर 299 रह गई जिनमें से 229 प्रांतीय विधानसभाओं का और 70 देशी रियासतों का प्रतिनिधित्व करते थे। 26 नवंबर, 1949 को संविधान पर

Carbon and its compound

कार्बन एवं उसके यौगिक (Carbon and its compound) कार्बन एक ऐसा तत्व है जो एक और पेंसिल में लगे ग्रेफाइट के रूप में कोमल तथा हीरे के रूप में अत्यंत कठोर और अभूतपूर्व चमक वाला है, तो वही लकड़ी के कोयले के रूप में काला, यही नहीं कार्बन सभी सजीवों (जंतु एवं वनस्पतियों) तथा दैनिक जीवन में एक िदन मे योगिक के रूप में उपस्थित होता है । निर्जीव वस्तुओं में भी कार्बन मुक्त रूप एवं योगिक दोनों ही रूप में उपस्थित हो सकता है। मुक्त रूप में कार्बन अपने विभिन्न रूपों में पाया जाता है। संयोग अवस्था में कार्बन बहुत से योगिक में पाया जाता है। कार्बन की उपस्थिति योग के रूप में मुक्त रूप में कार्बन की उपस्थिति(अपरूप) कार्बन, कोयला, कालिख, ग्रेफाइट, हीरा आदि विभिन्न रूपों में भी मुक्त अवस्था में प्राप्त होता है यह सभी पदार्थ कार्बन तत्व के भिन्न रूप में जिनमें हमें कार्बन के अपरूप कहते हैं। पदार्थ के इस रूप को अपरूपता कहते हैं। कार्बन के विभिन्न रूपों के भौतिक गुणों में विभिन्नता दिखाई देती है। हीरा चमकदार व कठोर होता है, जबकि कोयला, काजल, काले  ग्रेफाइट, काले रंग के होते हैं। इनके गुणों में विभिन्नता कार्ब

Hydrosphere (जलमंडल )

  जलमंडल जलमंडल Hydrosphereसे तात्पर्य पृथ्वी पर उपस्थित समस्त जलराशि से है। पृथ्वी की सतह के 71प्रतिशत भाग पर जल उपस्थित है। उत्तरी गोलार्ध में जल मंडल तथा स्थलमंडल लगभग बराबर है, परंतु दक्षिणी गोलार्ध में जल मंडल, स्थलमंडल से 15 गुना अधिक है। जलमंडल के अधिकतर भाग पर महासागरों का विस्तार है और बाकी भाग पर सागर कितने जिले हैं। महासागर 4 है, जीना प्रशांत महासागर सबसे बड़ा है। बाकी तीन इस प्रकार है:- (आकार के हिसाब से) आंध्र या अटलांटिक महासागर, हिंद महासागर और आर्कटिक महासागर। महासागरों की औसत गहराई 4000 मीटर है। महासागरीय धरातल (ocean floor) महासागरों का धरातल समतल नहीं है। नासा गरीब रातलो कौन निम्न भागों में विभक्त किया जा सकता है। महाद्वीपीय मगनत्त ( continental shelf) यह महासागर तट से समुद्री सतह की ओर अल्प ढाल जलमग्न धरातल  है । सामान्यतः यह 100 fathom की गहराई तक होता है। वह मग्नतट संकरा संकरा संकरा होता ह। विश्व में तेल में गैसों का कुल 20% भाग  यहां पाया जाता है। मगर तट समुद्री जीव जंतुओं के समृद्धत्म स्थल है, मछली और समुंदरी खाद्य प्रदान करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। महाद

पोषण (Nutrition)

  पोषण ( Nutrition) उन सभी क्रियाओं का कुल योग है जो भोजन के अंत्य ग्रहण पाचन, पचे हुए भोजन के अवशोषण और अपाचित भोजन के बहिष्कार से संबंधित है, पोषण मुख्यतः दो प्रकार का होता है:- 1. स्वपोषण:- जीव अपना भोजन स्वयम बनाते हैं, जैसे:-सभी हरे पौधे, कुछ एककोशिकीय जीव,-यूग्लीना, अमीबा आदि  2. परपोषण:- जीव अपने भोजन हेतु अन्य जीवो पर निर्भर रहते हैं:- जैसे:- परजीवी तथा  किटहारी, पोेधे। *भोजन(Food) भोजन में पोषक पदार्थ है जो किसी जीव द्वारा, वृद्धि, कार्य, मरम्मत और जीवन क्रियाओं के संचालन हेतु ग्रहण किया जाता है।जिसकी मात्रा एक उसके अवयव भिन्न भिन्न हो सकते हैं। भोजन के अवयव Components of food भोजन के साथ प्रमुख अवयव निम्नलिखित है 1.कार्बोहाइड्रेट 2. वसा 3. प्रोटीन 4. खनिज लवण 5. विटामिन 6. जल 7. मोटा चारा ( Roughage ) कार्बोहाइड्रेट कार्बोहाइड्रेट पॉलीहाइड्रिक सी एल्डिहाइड अथवा कीटोन होता है जो C,Hएवं O से बने होते हैं, इसमें C,H एवं O का अनुपात सामान्यत 1;2:1 होता है। कार्बोहाइड्रेट हमारे शरीर हेतु मुख्य उर्जा के स्त्रोत है, यह ऑक्सीकरण के पश्चात शरीर में उर्जा उत्पन्न करते हैं। 1 ग्राम कार्

Human Eye( मानव नेत्र)

मानव नेत्र नेत्र प्रकाश संवेदी अंग है, नेत्र गोलक मुख्यतः तीन स्तरों का बना होता है, Sclerotic:- द्रढ पटल तथा अपारदर्शी भाग Choroid यह कोमल संयोजी ऊतक का बना होता है, इसमें रंग कणिकाएं होती है, रंगा कणिकाएं खरगोश में लाल, मनुष्य में काली, भुरी या नीली  होती है, Retina सबसे भीतरी परत है जो संवेदी होती है, कॉर्निया एक पतली, पारदर्शी तरफ से ढका होता है, जिसे Conjunctive कहते हैं, यह प्रकाश को दृष्टि पटल पर केंद्रित करता है, आइरिश, वर्तुल, सर्कुलर पेशियां circular muscles एवं अरिय प्रसादी पेशियों से बना होता है। Iris पुतली के आकार को नियंत्रित करता है , पुतली (pupil) iris के बीच में स्थित काला छिद्र है, जिसके द्वारा प्रकाश नेत्र गोलक में प्रवेश करता है, लेंस द्विउत्ताल, पारदर्शी वित्तीय, तो संरचना है जो प्रोटीन का बना होता है। कॉर्निया एवं लेंस के बीच का भाग तेजोजल या aqueous humour द्वारा भरा होता है। लेंस एवं रेटिना के मध्य की गुहा मैं काचार जल या Vitreous Humour भरा होता है। दृष्टि पटल retina एक तंत्रिका ऊतक की परत एवं एक वर्णक परत का बना होता है, किसी भी वस्तु का चित्र दृष्टि पटल पर बन

शास्त्रीय नृत्य

भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्य भारत में सबसे महत्वपूर्ण मुख्य: 7 भागों में बांटा गया है:- *भरतनाट्यम:- यह तमिलनाडु का प्रमुख शास्त्रीय नृत्य है,जिसे कर्नाटक संगीत के माध्यम से एक व्यक्ति प्रस्तुत करता है, यहां भ का अर्थ भाव से,र का अर्थ राग से, त का अर्थ ताल से, और नाट्यम का अर्थ थिएटर से है। यह नृत्य पहले मंदिरों मैं प्रदर्शित होता था। *कथकली:- यह केरल का प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य है, इसमें कलाकार स्वयं गाता नहीं है, बल्कि एक विशेष लय एवं राग के संगीत पर नृत्य करता है, नाटक की कथावस्तु अधिकांश: महाकाव्य एवं पौराणिक कथाओं पर आधारित है। कथकली का शाब्दिक अर्थ है, किसी कहानी पर आधारित नाटक। *कुचिपुड़ी:- यह आंध्र प्रदेश का नाट्य नृत्य है। कुचिपुड़ी नामक गांव के नाम पर ही इसका नाम पड़ा, इसमें अनेक कथनको (धार्मिक या पौराणिक) पर नृत्य होता है। *ओडिसी:- यह उड़ीसा का प्राचीन नृत्य है, यह पूर्णता आराधना का नृत्य है, इसमें नृत्य के माध्यम से संपन्न का भाव लिए, नृत्य की ईश्वरीय स्तुति करती हैं। *कथक:- यह मूल्यत: उत्तर भारत का शास्त्रीय नृत्य है। 13वीं शताब्दी के संगीत रत्नाकर ग्रंथों में कत्थक शब्

विश्व की प्राचीन सभ्यताएं

*मिश्रा की सभ्यता:- मिस्र की सभ्यता का प्रारंभ 3400 ई० पू ० मैं हुआ। मिस्र को नील नदी की देन कहा गया है। मिश्र के बीच में नील नदी बहती है, जो मिश्र की भूमि को उपजाऊ बनाती है। यह सभ्यता प्राचीन विश्व की अति विकसित सभ्यता थी इस सभ्यता ने विश्व की अनेक सब बताओ को पर्याप्त रूप से प्रभावित किया है। सामाजिक जीवन में सदाचार का महत्व इसी सभ्यता से प्रसारित हुआ है। सामाजिक जीवन की सफलता के लिए उन्होंने नैतिक नियमों का निर्धारण किया। मिस्र के राजा को फराओ कहा जाता था। उसे ईश्वर का प्रतिनिधि तथा सूर्य देवता का पुत्र माना जाता था। मरणोपरांत राजा के शरीर को पिरामिड नामक मंदिर में सुरक्षित कर दिया जाता था। पिरामिड को बनाने का श्रेय फराओ जोसर  के वजीर इमहोटेप को है। मृतकों के शवों को सुरक्षित रखने के लिए शव पर रासायनिक द्रव्यों का लेप लगाया जाता था। ऐसे मृतक के शरीर को ममी कहा जाता था। शिक्षा के क्षेत्र में सर्वप्रथम व्यवस्थित विद्यालय को प्रयोग यही हुआ था और यहीं से अन्यत्र प्रचलित हुआ। विज्ञान के क्षेत्र में मिश्र वासी विश्व में आगे समझे जाते हैं। रेखा गणित में जितना ज्ञान उन्हें था उतना विश्व के अ